Home2011April (Page 15)

बादशाह सुबुक्तगीन पहले बहुत गरीब था| वह एक साधारण सैनिक था| एक दिन वह बंदूक लेकर, घोड़ो पर बैठकर जंगल में शिकार खेलने गया था| उस दिन उसे बहुत दौड़ना और हैरान होना पड़ा| बहुत दूर जाने पर उसे एक हिरनी अपने छोटे बच्चे के साथ दिखायी पड़ी| सुबुक्तगीन ने उसके पीछे घोड़ा दौड़ा दिया|

“Vaisampayana said, ‘The godlike Rishis, wise in counsels, beholding thedeath of Pandu, consulted with one another, and said, ‘The virtuous andrenowned king Pandu, abandoning both sovereignty, and kingdom came hitherfor practising ascetic austerities and resigned himself to the asceticsdwelling on this mountain. He hath hence ascended to heaven, leaving hiswife and infant sons as a trust in our hands. Our duty now is to repairto his kingdom with these his offspring, and his wife.’

संसार में किसी का कुछ नहीं| ख्वाहमख्वाह अपना समझना मूर्खता है, क्योंकि अपना होता हुआ भी, कुछ भी अपना नहीं होता| इसलिए हैरानी होती है, घमण्ड क्यों? किसलिए? किसका? कुछ रुपये दान करने वाला यदि यह कहे कि उसने ऐसा किया है, तो उससे बड़ा मुर्ख और कोई नहीं और ऐसे भी हैं, जो हर महीने लाखों का दान करने हैं, लेकिन उसका जिक्र तक नहीं करते, न करने देते हैं| वास्तव में जरूरतमंद और पीड़ित की सहायता ही दान है, पुण्य है| ऐसे व्यक्ति पर सरस्वती की सदा कृपा होती है|

वृन्दावन में एक भक्त को बिहारी जी के दर्शन नहीं हुए| लोग कहते कि अरे! बिहारी जी सामने ही तो खड़े हैं| पर वह कहता कि भाई! मेरे को तो नहीं दिख रहे! इस तरह तीन दिन बीत गये पर दर्शन नहीं हुए|