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द्वापर नगर में द्रोण नामक एक दरीद्र ब्राह्मण रहता था| ब्राह्मण को भिक्षा अच्छी मिल जाती तो उसका सारा परिवार भरपेट भोजन करता और कम या कुछ न मिलने पर भूखे पेट सोना पड़ता| उसने या उसके परिजनों ने न कभी अच्छे वस्त्र पहने थे और न कभी बढ़या भोजन ही किया था|

युधिष्ठिर पांडु का ज्येष्ठ पुत्र था| धर्मराज द्वारा कुंती के आह्वान पर बुलाए जाने पर उनके अंश से ही यह पैदा हुआ था, इसलिए धर्म और न्याय इसके चरित्र में कूट-कूटकर भरा था| इसी के कारण इसको धर्मराज युधिष्ठिर पुकारा जाता था| वह कभी असत्य नहीं बोलता था, तभी शत्रु पक्ष के लोग भी उनकी बात पर पूरा विश्वास करते थे| स्वार्थ के कारण किसी प्रकार अनुचित कार्य करना इनको नहीं सुहाता था|