बालकाण्ड 04 (201-250)
एक बार जननीं अन्हवाए। करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए॥
निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना॥
एक बार जननीं अन्हवाए। करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए॥
निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना॥
पाण्डु की दो पत्नियां थीं – माद्री और कुंती| दोनों रूपवती और गुणवती थीं| दोनों के हृदय में धर्म और कर्तव्य के प्रति अत्यधिक निष्ठा थी| दोनों पाण्डु को अपने जीवन का सर्वस्व समझती थीं| दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था| माद्री अवस्था में कुछ बड़ी थी| अत: कुंती उसे अपनी बड़ी बहन समझती थी|
सतयुग और त्रेता युग बीतने के बाद जब द्वापर युग आया तो पृथ्वी पर झूठ, अन्याय, असत्य, अनाचार और अत्याचार होने लगे और फिर प्रतिदिन उनकी अधिकता में वृद्धि होती चली गई| अधर्म के भार से पृथ्वी दुखित हो उठी| उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पास पहुंचकर प्रार्थना की कि वे उसे इस असहनीय भार से मुक्त करें|
1 [ज]
दृष्ट्वा पुत्रांस तथा पौत्रान सानुबन्धाञ जनाधिपः
धृतराष्ट्रः किम अकरॊद राजा चैव युधिष्ठिरः
विविध परेशानियों एवं कष्टों के कारण जब मस्तिष्क कमजोर हो जाता है तो व्यक्ति को वहम घेर लेता है| ऐसे में वह हर समय नकारात्मक बातें सोचता रहता है| उसके अंदर आत्मविश्वास की कमी, हीन भावना, निराशा एवं चिंता व्यापक रूप से अपनी जड़ जमा लेती है|
“Vaisampayana said, ‘Coming back to Upaplavya from Hastinapura, thatchastiser of foes, Kesava, represented unto the Pandavas all that hadhappened, and conferring with them for a long space of time, and holdingrepeated consultations, Sauri went to his own quarters for rest.
“Sanjaya said, ‘Having fled away from Bhima, Alamvusha, in another partof the field, careered fearlessly in battle.