अध्याय 3
1 [स]
कृपस्य वचनं शरुत्वा धर्मार्थसहितं शुभम
अश्वत्थामा महाराज दुःखशॊकसमन्वितः
“Vaisampayana said, ‘Upon the failure of Krishna’s solicitations (forpeace), and after he had started for the Pandavas from the Kurus, Kshatriapproached Pritha and said these words slowly in grief,
पेशाब के साथ निकलने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के क्षारीय तत्त्व जब किन्हीं कारणवश नहीं निकल पाते और मूत्राशय, गुर्दे अथवा मूत्र नलिका में एकत्र होकर कंकड़ का रूप ले लेते हैं, तो इसे पथरी कहा जाता है|
एक बार वरुण के पुत्र भृगु के मन में परमात्मा को जानने की अभिलाषा जाग्रत हुई। उनके पिता वरुण ब्रम्ह निष्ठ योगी थे। अत: भृगु ने पिता से ही अपनी जिज्ञासा शांत करने का विचार किया। वे अपने पिता के पास जाकर बोले- ‘भगवन्!
“Dhritarashtra said, ‘After Arjuna had got the ruler of the Sindhuswithin sight, what, O Sanjaya, did the Panchalas, attacked byBharadwaja’s son, do, encountering the Kurus?’
“Vrihadaswa said, ‘Damayanti, having bowed down unto the gods, thusaddressed Nala with a smile, ‘O king, love me with proper regard, andcommand me what I shall do for thee.
Vaisampayana said, ‘Then the inhabitants of the forest of Khandava, theDanavas and Rakshasas and Nagas and wolves and bears and other wildanimals, and elephants with rent temples, and tigers, and lions withmanes and deer and buffaloes by hundreds, and birds, and various othercreatures, frightened at the falling stones and extremely anxious, beganto fly in all directions.
बादशाह अकबर को किस्से-कहानियां सुनने का भी शौक था और वे अक्सर किसी-न-किसी दरबारी को कहानी सुनाने को कह देते थे| एक दिन दरबारियों ने बादशाह अकबर के कान भरे कि बीरबल को भी कई कहानियां आती हैं|
प्राचीन कलमें तुग्ङभद्रा नदीके तटपर स्थित एक ग्राममें आत्मदेव नामक एक विद्वान् और धनवान् ब्राह्मण रहता था| उसकी स्त्रीका नाम धुन्धुली था|