अध्याय 308
1 [य]
अपरित्यज्य गार्हस्थ्यं कुरुराजर्षिसत्तम
कः पराप्तॊ विनयं बुद्ध्या मॊक्षतत्त्वं वदस्व मे
1 [य]
अपरित्यज्य गार्हस्थ्यं कुरुराजर्षिसत्तम
कः पराप्तॊ विनयं बुद्ध्या मॊक्षतत्त्वं वदस्व मे
“Sanjaya said, ‘Hearing these beneficial and auspicious words of Kesava,Karna worshipped Krishna, the slayer of Madhu, and said these words,’Knowing (everything), why dost thou yet, O thou of mighty arms, seek tobeguile me?
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ||
यह बहुत चिपचिपा, कुछ पारदर्शक तथा भूरे रंग का गाढ़ा होता है| साथ ही यह अत्यंत सुगंधित, मधुर, सघन पानी में सहज ही घुल जाने वाला होता है| यह कई प्रकार का होता है, किन्तु सबकी अपनी गंध, वर्ण और स्वाद होता है| मधुमक्खी सर्व प्रकार के फूलों से, उनका रस खींचकर शहद का निर्माण करती है|
एक बार राजा पुरंजय ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। इसमें दूर-दूर से ऋषि-मुनि बुलाए गए। यज्ञ प्रजा की सुख-शांति के लिए किया जा रहा था। राजा पुरंजय अत्यंत प्रजावत्सल थे। उनके राज्य में जो भी कार्य किए जाते, वे प्रजा के हितों को ध्यान में रखकर ही किए जाते थे। सभी आमंत्रित ऋषि-मुनियों का राजा ने यथोचित सत्कार किया। तत्पश्चात यज्ञ आरंभ हो गया।
"Dhritarashtra, said, 'Describe to me, O Sanjaya, the diverse kinds ofstandards resplendent with great beauty, of both the Partha and ourwarriors (in that battle).' "Sanjaya said, 'Hear, O king, of the diverse kinds of standards of thosehigh-souled warriors. Listen to me as I describe their forms
रमानाथ और दीनानाथ में गहरी दोस्ती थी| दोनों ही एक-दूसरे पर जान छिड़कने का दम भरा करते थे| एक दिन दोनों घने जंगल से होकर गुजर रहे थे कि मार्ग में उन्हें एक भालू आता दिखाई दिया| वह उनकी तरफ़ ही आ रहा था| रमानाथ तेजी से भागकर निकट के पेड़ पर चढ़ गया| उसने अपने मित्र दीनानाथ की तनिक भी चिंता नही की| वह बोला, ‘भाई दीनानाथ! जान है तो जहान है| तुम भी अपने बचाव का रास्ता खोजो|’
“Vrihadaswa continued, ‘Then at the sacred hour of the holy lunar day ofthe auspicious season, king Bhima summoned the kings to the Swayamvara.
“Vaisampayana said, ‘Then Vibhatsu, the son of Pandu, invoking hisexcellent weapons, prevented that shower of rain by Indra, by means of ashower of his own weapons. And Arjuna of immeasurable soul soon coveredthe forest of Khandava with innumerable arrows like the moon covering theatmosphere with a thick fog.