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एक निर्धन व्यक्ति था। वह नित्य भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करता। एक बार दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी की श्रद्धा-भक्ति से पूजा-अर्चना की। कहते हैं उसकी आराधना से लक्ष्मी प्रसन्न हुईं। वह उसके सामने प्रकट हुईं और उसे एक अंगूठी भेंट देकर अदृश्य हो गईं। अंगूठी सामान्य नहीं थी। उसे पहनकर जैसे ही अगले दिन उसने धन पाने की कामना की, उसके सामने धन का ढेर लग गया।

बादशाह अकबर ने सोचा कि बीरबल को कोई ऐसा काम करने को कहा जाए जिसे वह कर ही न सके| यही सोचकर उन्होंने बीरबल को दरबार में बुलाया और कहा – “बीरबल, वैद्यजी ने एक ओषधि बनाने के लिए बैल के दूध की मांग की है, अत: हमें कहीं से बैल का दूध ला दो|”

भूमिका:

न्यौछावर जाए शहीदों के सिरताज, ब्रह्म ज्ञानी आप परमेश्वर सतिगुरु अर्जन देव जी के, जिन्होंने हर एक महापुरुष तथा परमेश्वर भक्त का सत्कार किया| हिन्दू मुसलमान के सत्कार के साथ उनका भी आदर सत्कार किया, जिनको ब्रह्मण समाज निम्न समझता था| मनव जाति का सत्कर किया|