Home2010September (Page 3)

साईं बाबा अपने शिष्य के साथ बैठे आध्यात्मिक विषय पर बातें कर रहे थे कि तभी एक बूढ़ा व्यक्ति रोता-पीटता आया और हाथ जोड़कर साईं बाबा के सामने आकर जोर-जोर से रोने लगा|

एक बार की बात है – बाबा के एक भक्त ने बाबा की अनुपस्थिति में अन्य लोगों के सामने एक दोस्त की बात निकलते ही उसे भला-बुरा कहना शुरू कर दिया| उसके शब्द इतने बुरे थे कि उससे सभी को घृणा हुई| ऐसा देखने में आता है कि बिना वजह निंदा करने से विवाद ही पैदा होते हैं| पर ऐसे व्यक्ति को सही मार्ग पर लाने की बाबा की प्रणाली बड़ी विचित्र थी|

साठे मुम्बई के प्रसिद्ध व्यापरी थे| एक बार उन्हें अपने व्यापार में बहुत हानि उठानी पड़ी, जिससे वे बहुत उदास-निराश हो गये| उनके मन में घर-बार छोड़कर एकांतवास करने के विचार पैदा होने लगे| साठे की ऐसी स्थिति देखकर उनके एक मित्र ने उनसे कहा – “साठे ! तुम शिरडी चले जाओ और वहां पर कुछ दिन साईं बाबा की संगत में रहो| सत्संग में रहकर व्यक्ति निश्चित हो जाता है और साईं बाबा तो वैसी भी साक्षात् ईशावतार हैं| आज तक बाबा के दरबार से कोई भी निराश होकर नहीं लौटा है| इसलिए लोग बड़ी दूर-दूर से उनके दर्शन करने के लिये शिरडी जाते हैं| यदि मेरी बात मानो तो तुम भी एक बार शिरडी जाकर देख लो| यदि बाबा चाहेंगे तो तुम्हारी भी झोली भर देंगे|”