14 – जादुई परी | Jaadui Pari | Tilismi Kahaniya
दानव: “सुनाओ आगे! चुप क्यों हो गए। मुझे आगे बताओ कि हरिया का क्या हुआ?”
जयदेव: “फिर क्या! बेचारा हरिया तो फूट-फूट कर रोता है और उसकी याद में खुद को कोसने लगता है!”
राक्षस: “पर वो हरिया क्यों रोया?”
करण: “क्योंकि हरिया तो उस बकरी को खाना चाहता था, उसे तो एक ना एक दिन मरना ही था! पर बकरी की वजह से ही हरिया की जान बची थी।”
जयदेव: “लेकिन! करण तुम ही सोचो उस हरिया की क्या हालत हुई होगी। जब उसने अपने उस पालतू पशु को इस तरह से मृत देखा होगा!”
करण: “फिर पता है? आगे क्या हुआ?”
दानव: “नहीं, नही बताओ मुझे!”
करण: “जब हरिया फूट फूट कर रो रहा था तभी गांव के कुछ लोग उसके घर में आए और उसे राक्षस के बारे में सब कुछ बताया। उसके एक खास मित्र ने उसे बताया कि अगर आज उस की बकरी उसके घर में ना होती तो शायद वह राक्षस उसे ही मारकर खा जाता।”
जयदेव: “हाँ! तो ज़ब हरिया को यह बात पता चलती है तो वह और जोर जोर से रोने लगता है और अपनी बकरी को याद करता रहता है। लेकिन अब रोने से कोई भी फायदा नहीं था क्योंकि उसकी बकरी तो अब मर चुकी थी!”
विदुषी (दानव से): “देखिए ना ! कैसे एक मूक प्राणी ने निस्वार्थ हो कर अपने मालिक की रक्षा करी।”
दानव (रोते हुए): “हमममममम …….,,,,”
कुश: “मालिक, अब आप बताइए क्या उस बकरी के साथ सही हुआ?”
दानव: “नहीं नहीं…. बिल्कुल भी नहीं! बहुत गलत किया”
दरअसल करण ज़ब उसके निवास के अंदर आया था तो उसने उस राक्षस की एक तस्वीर देखी थी, जिस में उसका एक पालतू पशु था।
जिससे करण को समझ में आ गया था कि ये राक्षस जानवरों से अत्यंत प्रेम करता है और इसलिए करण ने उसे यही कहानी सुनायी!
करण: “मुझे पूर्ण रूप से यह यकीन हो गया है कि आपको मेरी कहानी अच्छी लगी है तो क्या आप मेरी एक इच्छा पूरी करेंगे?”
दानव: “अवश्य अवश्य,,,,!”
करण (उस डिब्बे में कैद परी की ओर इशारा करते हुए): “तो आप उस परी को अपनी कैद से आजाद कर दीजिए!”
दानव: “मैं इसे अजाद तो कर दूंगा लेकिन तुम्हें मेरे साथ यहां पर रहना होगा ताकि तुम मुझे हर दिन अच्छी अच्छी कहानियां सुनाओ!”
करण (उससे झूठ बोलता है): “अवश्य मेरे मालिक आप जैसा कहें! मैं यहीं राह लूंगा।”
दानव: “ठीक है मैं इसे अभी आजाद करता हूं!”
तो वह दानव एक मंत्र पढ़ता है और उसके बाद एक जादुई शक्ति को उस परी की तरफ फेकता है जिससे वह डिब्बा एक जादुई रोशनी से भर जाता है और उसमें से थोड़ी देर बाद वो परी निकलती है।
टॉबी: “कितनी सुंदर परी है ना?”
लव: “हाँ टॉबी!”
विदुषी: “मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा लव!”
परी ( उस दानव से ): “दुष्ट प्राणी, तू अब नहीं बचेगा!”
जयदेव: “इसका खातमा कर दीजिए !”
दानव: “मेरे साथ धोखा हुआ है!”
करण: “मैंने जानबूझकर इस परी को आजाद करवाया था कि ये तुझे सबक सिखा,,,,, तूने आज तक कई लोगों की जिंदगियां बर्बाद की है और आज तूने उन सभी बुरे कर्मों का परिणाम भोगने के वक्त आ गया है”
तो वह परी अपनी जादुई छड़ी घुमाती है और उसमें से एक सफेद रंग की चमक निकलती है तत्पश्चात वहां पर एक छोटी बोतल दिखाई देती है।
परी: “तूने मुझे कैद किया था ना, अब तू देख कि कई महीनों तक कैद होने का एहसास कैसा होता है!”
दानव (डर से चिल्लाते हुए): “नहीं नहीं नहीं नहीं,,,,,,, ननह्ह्हह्ह्ह्हहीईई!”
और वह दानव परी के द्वारा उत्पन्न किए हुए उस जादुई बोतल में चमत्कारी रूप से कैद हो जाता है।
परी: “अब से तू मेरे लोक में ही ऐसे हीं कैद रहेगा।!”
सुनहरी चिड़िया: “बहुत-बहुत धन्यवाद सुंदर परी,आपका शुभ नाम क्या है?”
परी (मुस्कुराते हुए): “मेरा नाम अप्सरा है, और मैं अप्सरा नगर में रहती हूं!”
टॉबी: “तो वह जगह बहुत ही सुंदर होगी ना, जैसे कि आप हैं!”
परी ( हंसते हुए): “यह तभी पता चलेगा जब आप सब मेरे साथ मेरे अप्सरा नगर में चलेंगे!”
टॉबी: “करण एक बार इन सुंदर परी के नगर में चलते हैं ना? मैंने कभी भी नहीं देखा की परियां कैसे रहती है!”
लव कुश: “हाँ हां! चलो।”
जयदेव: “अरे टॉबी देखा तो हमने भी नहीं है लेकिन अभी हम कैसे जा सकते हैं?”
टॉबी मायूस हो जाता है।
सुनहरी चिड़िया (मुस्कुराते हुए टॉबी से): “तुम्हें उदास होने की कोई आवश्यकता नहीं है मित्र, हम अप्सरा नगर जरूर चलेंगे!”
करण: “पप्प्प…परन्तु…,,,,!”
सुनहरी चिड़िया: “अरे करण तुम परेशान मत हो! बस थोड़ी देर की तो बात है!”
विदुषी: “हां करण! राजकुमारी चंदा सही कहती है, मुझे भी टॉबी की तरह अप्सरा नगर देखने का बहुत मन कर रहा है क्योंकि मैंने तो केवल अपनी दादी मां के मुंह से कहानियों में ही सुना था कि परी भी होती हैं।”
जयदेव: “ठीक है चलते हैं फिर!”
परी (मुस्कुराते हुए): “ठीक है तो आप सभी तैयार हो जाइए!”
परी अपनी छड़ी को घुमाती है और सभी लोगों को एक घेरे में आने के लिए कहती है तत्पश्चात चारों और एक जादुई चमकीला घेरा बन जाता है और सभी लोग उस स्थान से अप्सरा नगर में पहुंच जाते हैं।
विदुषी: “वाह्ह्हह्ह्ह्ह….. अप्सरा, आपका नगर अत्यंत लूभावना और सुंदर है, मुझे तो अभी भी यकीन ही नहीं हो रहा है कि ऐसी भी कोई सुंदर दुनिया है!”
लव: ” अरे वो देखो उड़ने वाला कुक्कुर, वाहह्ह्ह्ह,,,,,,”
अप्सरा नगर अत्यंत आकर्षक और तीलीस्मि था, चारों तरफ उड़ने वाले पशु और सुंदर सुंदर परियां आसमान में उड़ती हुयी दिखाई दे रही थी जिसे देख कर सभी का मन एकदम प्रसन्न चित्त हो जाता है।
टॉबी: “महारानी अप्सरा, क्या मैं भी उड़ सकता हूं? आपके लिए तो ये करना आसान होगा ना? ”
परी (मुस्कुराते हुए): “हाँ क्यों नहीं नन्हें प्राणी !”
तभी परी फिर से अपनी छड़ी घुमाती है और अचानक से टॉबी के पंख बन जाते हैं और वह आसमान में उड़ने लगता है।
टॉबी (हसते हुए): “वाह्ह्ह्ह…. महारानी अप्सरा मैं तो वाकई में उड़ रहा हूं! बहुत आनंद आ रहा है”
विदुषी: “मै भी उड़ना चहती हूँ!”
और वह भी परी की जादू के कारण हवा में उड़ने लगती है। वह टॉबी को पकड़ती है और गोल-गोल हवा में उड़ने लगती है।
लेकिन तभी वहां पर एक व्यक्ति आ जाता है जो क्रूद्ध (गुस्सा) था!
तो अगले एपिसोड में हम ये जानेंगे कि आखिर वह व्यक्ति कौन था?