Homeतिलिस्मी कहानियाँ12 – जादुई राजकुमारी | Jaadui Rajkumari | Tilismi Kahaniya

12 – जादुई राजकुमारी | Jaadui Rajkumari | Tilismi Kahaniya

करण: “अरे आगे का रास्ता तो बंद है! अब हम आगे कैसे बढ़ेंगे?”

विदुषी: “हाँ करण! अब क्या होगा?”

सुनहरी चिड़िया: “ये रास्ता तो पूरा पत्थरों से बंद है और देखो बीच में इतना विशाल गड्ढा भी है!”

टॉबी: “अब हम उस पार कैसे जाएंगे।”

तभी अचानक से उन पत्थरों पर अपने आप ही किसी गुप्त भाषा में कुछ अपने आप लिख जाता है जिसमे से एक विशिष्ट चमक बाहर आ रही है।

लव: “अरे ! अरे! फिर से कोई राक्षस तो नहीं आ जाएगा!!?”

जयदेव: “सभी लोग पीछे हट जाओ, कुछ भी हो सकता है!”

कुश: “हे भगवान! हमें बचा लीजिए! मुसीबतें तो खत्म होने का नाम ही नही ले रहीं हैं।”

तभी वहां पर एक स्त्री आ जाती है जो कि देखने में बहुत खूबसूरत है और जिसने हरे रंग के वस्त्र पहने है।

करण: “आप कौन हैं और आप यहां पर क्या कर रही हैं?”

स्त्री: “आप सभी को घबराने की कोई जरूरत नहीं है। मैं इस जगह की रक्षक देवी हूँ। मैं इस जगह की सुख शांति के लिए कई सालों से यहां की रक्षा करती आ रहीं हू।”

विदुषी: “देवी जी! प्रणाम, क्या आप हमारी मदद कर सकती हैं इस परेशानी से निकलने में?”

स्त्री: “अवश्य बालिका!”

टॉबी: “ये चमक कैसी है?”

स्त्री: “यह मेरी शक्ति का प्रतीक है!,,,,, तुम सब चिंता मत करो! मैं अब इन पत्थरों को यहां से हटा देती हूं ताकि आप लोग अपना सफर आगे जारी रख सकें।”

तभी वो देवी अपनी हथेली को खोलती है और उसकी हथेली से एक विशेष प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है जो नीले रंग के गोले के रूप मे था।

वह उस गोले को उन पत्थरों की ओर फेकती है जिससे सारे पत्थर जोर से टूटने लगते हैं।

करण: “सभी सम्भलकर। किसी को चोट ना पहुंचे। झुक जाओ सब।”

सुनहरी चिड़िया: “सभी! पीछे हट जाओ,,,, देखो हमारी तरफ़ एक विशाल पत्थर लुढ़कता हुआ आ रहा है!”

करण (दम लगाते हुये): “जयदेव! यहां आओ जल्दी! मेरे साथ पत्थर को रोको! नही तो हम इस के नीचे दब जाएंगे।”

जयदेव (दर्द मे): “हाँ मित्र!”

तभी वह देवी अपनी शक्ति से उस पत्थर को हटाने की कोशिश करती हैं

करण: “देवी जी ध्यान से! कहीं आपको चोट ना आ जाए,, पत्थर काफी भारी है!”

देवी: “आप दोनों चिंता ना करें! आप दोनों यहां से जाइए!”

और इसी बीच वह बड़ा पत्थर उस देवी के ऊपर आ जाता है।

कुश: “हे भगवान यह क्या हो गया?”

टॉबी (देवी के पास जाकर): “लेकिन ये अभी जिंदा है।”

करण: “अब, हमें इनके होश में आने का इंतजार करना होगा क्योंकि इन्होंने हमारी जान बचाई है, हम इन्हें ऐसे नहीं छोड़ सकते हैं यहां पर!”

जयदेव: “हाँ मित्र!”

तो थोड़ी देर बाद उस देवी को होश आता है!

देवी (धीमी आवाज में): “मुझे मेरे निवास स्थान पर ले चलो, मुझे पीड़ा हो रही है।”

विदुषी: “देवी जी! आप बिल्कुल भी चिंता ना करें, हम आपको आपके निवास स्थान पर जरूर ले जाएंगे!”

करण: “चलिए!”

विदुषी: “आप मुझे पकड़ लीजिए और हमारे तांगे में आराम से बैठ जाइए!”

करण: “अब आप हमें रास्ता बताइए देवी जी, हम आपको आपके निवास स्थान पर सही सलामत छोड़ देंगे!”

देवी: “यहां से बाएं मुड़ कर एक बरगद का पेड़ है उस पेड़ के थोड़ा आगे चलकर एक घर है, बस वही मेरा घर है।”

करण: “ठीक है!”

कुश: “आपको ज्यादा पीड़ा हो रही है क्या?”

देवी: “नहीं! बस मैं घर पहुंच जाऊं तो थोड़ा आराम मिलेगा!”

तो थोड़ी देर बाद सभी लोग उस देवी के द्वारा बताए हुए पते पर पहुंच जाते हैं। सभी मित्र उसके घर को देखकर काफी चौक जाते है क्यूंकि उस देवी के घर के चारों ओर विभिन्न प्रकार के आकर्षक फूल, पौधे और तितलियां साथ ही जुगनू उस जगह की सुंदरता को बढ़ा रहे थे।

विदुषी (चौकते हुये): “अति सुंदर, आपका घर तो अत्यधिक सुंदर है देवी जी!”

लव: “हाँ! वास्तव में।”

देवी: “बहुत-बहुत धन्यवाद!”

लव: “चलिए देवी जी आपको हम सब अंदर ले चलते हैं!”

करण: “अरे! अचानक से अंधेरा कैसे हो गया?”

विदुषी: “देवी मां बताइए? आपके घर में इतना अंधेरा कैसे हो गया, अभी तो इतनी जगमगाहट थी?…. दे……”

टॉबी: “अरे, देवी जी यहाँ नहीं है! वो तो गायब ही गयीं हैं”

सुनहरी चिड़िया: “पता नहीं क्यों हमें ऐसा आभास हो रहा है कि कुछ गलत होने वाला है!”

जयदेव: “हमें तो कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है कितना अंधेरा हो गया है!”

सुनहरी चिड़िया (चौकते हुए): “यह तो पहले जैसा बिल्कुल नहीं लग रहा है। ये अचानक बदल कैसे गया।!”

टॉबी: “आप बिल्कुल सही कहती हैं राजकुमारी चंदा!,,, मैं इस स्थान की गंध सूंघ रहा हूं, यह बिल्कुल परिवर्तित हो गई है।”

करण: “देवी जी, आप ठीक है?”

देवी: “हां मेरे मित्रों हा हा हा हा हा हा………”

लव: “अरे देखो ! देवी के पीछे एक पूँछ दिख रही है, ये कोई देवी नहीं है,,,, भागो सब यहां से, जल्दी!”

कुश: “फिर से नई मुसीबत आन पड़ी है।”

देवी: “हा हा हा! यहां पर तुम सब आ तो गए हो लेकिन जाओगे तब, जब मैं चाहूंगा हा हा हा हा हा!….. तुम लोग कितनी भी कोशिश कर लो, यहां से आसानी से बचकर नहीं जा सकते …….”

करण: “अरे, यह तो एक दानव है और इसका आकार तो बढ़ता ही जा रहा है!”

जयदेव: “डरो मत करण!, मैं हूं तुम्हारे साथ!”

तो अगले एपिसोड में हम भी जानेंगे कि सभी मित्र कैसे इस भयानक दानव से अपनी रक्षा करेंगे? क्या वो दानव किसी की जान लेगा या सब बच जाएंगे!

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