सिद्धों को सही योग की दिशा देनी – साखी श्री गुरु राम दास जी
एक बार योगियों का समूह गुरु जी के दर्शन के लिए गुरु के चक्क आया| वह आदेस-आदेस करके गुरु जी के पास बैठ गए| वे गुरु जी की परीक्षा लेने लग गए|
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उन्होंने गुरु जी से पूछा कि योग के बिना किसी का मन स्थिर नही होता और मन स्थिर हुए बिना आत्मा का ज्ञान भी हासिल नहीं हो सकता| आत्मा का ज्ञान न हो तो मुक्ति भी प्राप्त नहीं हो सकती| परन्तु आप के सिक्ख जो योग मार्ग को नहीं अपना रहे उन्हें मुक्ति किस प्रकार प्राप्त होगी? वह कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते|
गुरु जी मुस्कुरा पड़े और कहने लगे – एक चित एकाग्र मन से सत्यनाम का स्मरण करना ही योग है| आपका योग मार्ग बहुत कठिन है| इससे शरीर को रोग लग सकते है| शरीर नकारा भी हो सकता है| अगर सिद्धि प्राप्त भी हो जाए तो मन ऋद्धियों-सिद्धियों में फंस जाता है| वह जगत की झूठी वासनाओं में लिप्त हो जाता है| परन्तु हम सत्यनाम के स्मरण से आत्मज्ञान प्राप्त करते है| आत्मज्ञान प्राप्त करके इसी रंग में रंगे रहते है| सारे विश्व को आनन्द रूप जानते है| अगर मन भिन्न-भिन्न खेलों में खेल रहा है तो तन के योग का क्या फायदा? इसलिए इस परमात्मा का स्मरण करते हुए जो कि सर्वव्यापक है इसके रंग में रंगे रहे, यही योग है|
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