सिद्धों से चर्चा – साखी श्री गुरु राम दास जी

एक बार सिद्ध योगियों का समूह भ्रमण करता गुरु के चक्क दर्शन करने के लिए आया| आदेश आदेश करते गुरु जी के पास आकर बैठ गया|

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गुरु रामदास जी की शक्ति की परीक्षा करने ले लिए पूछा कि योग के बिना किसी का मन स्थिर नहीं हो सकता और मन स्थिर हुए बिना आत्मा का ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता और आत्मज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती परन्तु आपके सिख जो योग मार्ग को धारण नहीं करते उन्हें मुक्ति किस प्रकार मिलेगी?

यह दलीले सुनकर गुरु जी कहने लगे – हमारे मत में एक चित होकर सत्य नाम का स्मरण करना ही योग है| आपके अनुसार जो योग है वो बहुत कठिन है| इससे शरीर को रोग लग जाते हैं, शरीर नकारा हो जाता है| अगर सिद्धि प्राप्त भी हो जाये तो मन इनमे फस कर वासना में भ्रमित हो जाता है| परन्तु हमारे सिख परमात्मा के ध्यान द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त करके उसके रंग में रंगे रहते हैं और सारे संसार को आनंद रूप समझते हैं| हे योगी! अपने मन को इस परमात्मा के रंग में रंगों जो सदा ही एक सा रहता है|

इस प्रथाए आपने यह शब्द उच्चारण किया:

आसा महला ४ घरु ६||

हथि करि तंतु वजावे जोगी थोथर बाजै बेन|| 
गुरमति हरि गुण बोलहु जोगी इहु मनूआ हरि रंगि भेन||१|| 

जोगी हरि देहु मती उपदेसु|| 
जुग जुग हरि हरि एको वरतै तिसु आगै हम आदेसु||१|| रहाउ|| 

गावहि राग भाति बहु बोलहि इहु मनूआ खेलै खेल|| 
जोवहि कूप सिंचन कउ बसुधा उठि बैल गए चरि बेल||२|| 

काइिआ नगर महि करम हरि बोवहु हरि जमै हरिआ खेतु|| 
मनुआ अस्थिरू बैलु मनु जोवहु हरि संचिहु गुरमति जेतु||३|| 

जोगी जंगल स्रिसटि सभ तुमरी जो देहु मति तितु चेल|| 
जन नानक के प्रभ अंतरजामी हरि लावहु मनुआ पेल||४||६||६२||

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब पन्ना ३६८) 

 

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