श्री रामदास जी को वरदान – साखी श्री गुरु अमर दास जी
बाऊली का निर्माण कार्य चल रहा था| इसकी कार सेवा में बहुत सिक्ख सेवक काम में लग गए| इन्हीं के साथ श्री (गुरु) रामदास जी भी टोकरी उठा कर मिट्टी ढोते रहते|
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लाहौर की संगत हरिद्वार कुम्भ के मेले में जाती हुई गोइंदवाल के पत्तन पर आकर रुकी| इन्हीं संगतों के बीच श्री जेठा जी की जात बराबरी के सोढी क्षत्रि भी थे, उन्होंने जेठा जी (गुरु रामदास जी) को भी टोकरी उठाते देखा तो वे क्रोधित हो गए| कुड़ामाचारी का अहंकार और जेठा जी की बुरी हालत देखकर सभी श्री गुरु अमरदास जी के पास गए| उनके मन में गुरु जी के प्रति कोई सेवा का भाव नहीं था| वे गुरु जी कहने लगे, जवाई से मजदूरों वाला काम कराते हो|
ये ऊंची कुल का बालक है| आपने इसे निकृष्ट कार्य पर लगाया हुआ है| हमें हमारे रिश्तेदार क्या कहेंगे| ऐसी बात सुनकर श्री जेठा जी ने हाथ जोड़ दिए| वे गुरु जी को कहने लगे महाराज! यह आपकी महिमा से अवगत नहीं है| इसलिए बिना किसी सोच-विचार के आपको बोल रहे हैं| इनके वचनों का बुरा न मानें| आप इन पर अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखें|
गुरु जी जेठा जी के मन को भांप गए की इनके मन में संसार की लोकाचारी, लोकलाज का कोई भय नहीं है| यह प्रेमा भक्ति में रंगे हुए भक्त हैं| तत् पश्चात् गुरु जी लाहौर निवासी मुखियों को कहने लगे श्री जेठा जी के सिर पर मिट्टी की टोकरी नहीं है, जगत का छत्र है| यह आपकी कुल का नाम रोशन करेंगे| ऐसे बचनों को सुनकर सभी दंग रह गए व गुरु जी को नमस्कार करके चले गए|
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