गुरु जी का डल्ले गांव में उपदेश – साखी श्री गुरु अमर दास जी
गुरु जी अपने आसन पर विराजमान थे| कुछ सिक्ख गुरु जी के दर्शन करने के लिए पहुंचे|
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उन्होंने गुरु जी से प्रार्थना की कि महाराज! हमारा उद्धार किस प्रकार सम्भव है? हमें आप ऐसा उपदेश दें जिससे हमारा उद्धार हो जाए| गुरु जी कहने लगे कि अहंकार बंधन का रूप है| यह सबको भ्रष्ट किए हुए है| जिसके कारण हम परमेश्वर से दूर हो जाते है| इसकी याद हमें भूल जाती है| अहंम भाव को त्यागना आवश्यक है, जब तक आप अपने इस भाव का त्याग नहीं करेंगे तब तक आपकी सुरति इस परमात्मा से नहीं जुड़ सकती| अहंम भाव को त्याग कर अपनी लिव इस निरंकार से जोड़ो| किसी से ईर्ष्या व द्वेष का भाव न रखो| समदृष्ट्रि अपनाओ| सहनशीलता का भाव धारण कर लो| इससे ही आपका उद्धार होगा| सिक्खो की विशेष सेवा करो|
उनको कपड़े सिलकर पहनाओ| वस्त्र अगर मैले हैं तो उन्हें धोकर साफ करो| गुरसिक्खों और साधु-सन्तों के कपड़े साफ करने से आपका मन साफ हो जाएगा| बुराइयों की मैल निकल जाएगी| आपका गुरु से मेल हो जाएगा| सत्य का संग करो| श्रद्धा भाव से सेवा और नाम का स्मरण करने से आपका उद्धार हो जाएगा|
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