भृर्थरी जोगी से कजलीवन में चर्चा – साखी श्री गुरु नानक देव जी
श्री गुरु नानक देव जी बीजापुर के घने जंगल कजलीबन में योगियों के आश्रम पहुंचे| वहां योगियों के मुखी भृर्थरी ने आपसे योग धारण करने की बात की|
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गुरु जी मुस्कुरा कर कहने लगे, “आप हठ और योग से शरीर को कष्ट देते हो, जिसकी वजह से मन इससे भागता है, टिकता नहीं| मन न टिकने के कारण परमतत्व की प्राप्ति नहीं होती| मगर हम अपनी लिव इस निरंकार प्रभु से लगाए रखते है| इससे शरीर को कष्ट भी नहीं होता| मन सदैव ही आनन्दमय व टिका रहता है|
हमारा यह सहज योग है, जिसको हम धारण किए हुए है| भृर्थरी ने फिर कहा हम सोमरम (मद) का प्याला पीकर अखण्ड घर में समाधि लगाते है जिससे हमें अलख निरंजन के दर्शन होते है| गुरु जी ने हंस कर उत्तर दिया कि हम तो नाम रस के प्याले के साथ हमेशा मदहोश रहते है और दिन-रात हमारी लिव इस निरंकार प्रभु से लगी रहती है|
परमात्मा के यशोगान में लगा मन सदा ही योगी होता है, वह अपना जन्म व्यर्थ नहीं गंवाता| भृर्थरी ने सच्चे मद प्याले का, सहज समाधि व नित्य दर्शन का निर्णय सुनकर गुरु जी को नमस्कार की| भृर्थरी के साथियों ने पूछा कि क्या गृहस्थ को त्यागकर, योग साधना के द्वारा भी प्रभु की प्राप्ति हो सकती है? गुरु जी बड़ी विनम्रता से बोले, हे योगी! जो पुरुष अपना निर्वाह कृत की कमाई करके करता है तथा जरूरतमंदों की भी यथाशक्ति मदद करता है तो उसे गृहस्थ में रहते हुए ही प्रभु की प्राप्ति हो जाती है| शर्त है उसका मन इस प्रभु की याद में लगा हो|
श्री गुरु नानक देव जी – जीवन परिचयश्री गुरु नानक देव जी – ज्योति ज्योत समाना
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