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अचल बटाले में गुरु जी का कौतक – साखी श्री गुरु नानक देव जी

अचल बटाले में गुरु जी का कौतक

सिद्धों का एक स्थान अचल बटाला जहां हर साल शिवरात्रि का मेला लगता है| यहां सिद्ध अपनी करामातें दिखाकर लोगों से अपनी पूजा करवाते है| गुरु जी के मेले में पहुंचते ही सभी लोग गुरु जी के पास इकट्ठे हो गए|

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उन्होंने माया के ढेर लगा दिए| यह दृश्य देखकर योगी ईर्ष्या से भर गए| उन्होंने वह पैसे वाला लोटा छिपा दिया| अर्न्तयामी गुरु ने उनका अहंकार चूर करने के लिए छिपाया हुआ लोटा प्रगट कर दिया| यह कौतक देख कर योगी क्रोध में आ गए| भंगरनाथ जोगी ने गुस्से से लाल पीले होकर कहा – आप ने दूध में कांजी डालकर दूध का सारा मटका खराब कर दिया है| जिससे दूध का सारा मटका फट गया है| अब इसको मथने से मक्खन नहीं निकलेगा| आप ने उदासी का भेरव धारण करके फिर गृहस्थ धारण क्यों किया|

हे भंगरनाथ! तेरी मां जिसने बर्तन अच्छे से साफ़ किए बगैर ही दूध को जामन लगा दी| तेरी मां बुद्धिहीन थी| जिसका नतीजा यह निकला कि आप गृहस्थ छोड़ कर खाने पहनने के लिए घर में ही मांगने जाते हो| योगियों ने भयानक रूप धारण कर लिया| जब लोग डरने शुरू हो गए तो गुरु जी ने अजिते रंधावे को कहा चौधरी| वाहिगुरू का नाम लेकर इनके चारों ओर लकीर खींच दो| इसके अंदर सिद्ध अपनी शक्ति नहीं चला पाएंगे| अजिते ने ऐसे ही किया तो लोग निर्भय होकर खड़े हो गए| सिद्धों ने चाहे बहुत तन्त्र-मन्त्र किए, परन्तु गुरु जी अडोल बैठे रहे| गुरु जी के शब्द मात्र से ही उनकी शक्ति कमजोर पड़ गई| सिद्ध गुरु जी की शरण में पड़ गए|

गुरु जी ने कहा नाथ जी! चाहे मुझ में बड़ी से बड़ी शक्तियां हैं और मैं सब कुछ अपनी आज्ञा में कर लूं| पर इस सत्यनाम के बिना सब शक्तियां एक बादल की छाया समान है| इस तरह सिद्धों ने अपनी हार मान ली| वह गुरु जी की स्तुति करते हुए नमस्कार करके चले गए|

श्री गुरु नानक देव जी – जीवन परिचय

 

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