HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 74)

एक घने जंगल की गुफा में एक नन्हा मेमना अपने माँ-बाप के साथ रहता था| बकरी परिवार के खाने के लिए जंगल में बहुत कुछ था-झाड़िया,पत्तियां आदि| तीनों का जीवन आराम से कट जाता, बस शिकारी जानवरों का डर भर न होता|

बहुत पुरानी बात है| उन दिनों इंग्लैंड और स्पेन के मध्य लड़ाई चल रही थी| लड़ाई के मोर्चे पर अंग्रेजों का एक वीर योद्धा सर किल्पि सिडनी घायल होकर गिर गया|

उस समय की बात है, जब विख्यात बांग्ला लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने लेखन की शुरुआत ही की थी। उन दिनो कई बार तो उनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं से लौटा दी जाती थीं और प्रकाशित होने पर भी उन्हें दूसरे लेखकों की तुलना में कम पारिश्रमिक मिलता था। इसी संकोच के कारण कई बार तो वह कहानी लिख कर भी छपने के लिए कहीं नहीं भेजते थे।

एक पंडित व चोर प्रतिदिन शिव मंदिर जाते। एक दिन चोर को मंदिर के द्वार पर सोने की अशर्फियां मिलीं और पंडित के पैर में लोहे की कील चुभ गई। तभी भगवान शिव प्रकट हुए और दोनों को उनके कर्मो का महत्व बताते हुए समझाया।

गोपाल भाड़ बहुत ही बुद्धिमान और मेहनती आदमी था| उसकी बुद्धि और व्यवहार कुशलता के बहुत चर्चे थे| लोगों की हर समस्या का हल वह चुटकियों में करता था| इसलिए उसके पास लोग अपनी-अपनी मुश्किलें लेकर आते ही रहते है|

बहुत पुरानी बात है…पाटलीनगर में एक युवक काम की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था| संयोगवश राज्य का कोषाध्यक्ष भी अपने एक मित्र के साथ उधर से गुज़र रहा था|

काशी में एक कर्मकांडी पंडित का आश्रम था, जिसके सामने एक जूते गांठने वाला बैठता था। वह जूतों की मरम्मत करते समय कोई न कोई भजन जरूर गाता था। लेकिन पंडित जी का ध्यान कभी उसके भजन की तरफ नहीं गया था। एक बार पंडित जी बीमार पड़ गए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया।

एक नदी में एक मोटा-सा, हरे रंग का मेंढक रहता था| मेंढक अपनी जिंदगी से खुश और संतुष्ट  था| एक बार दुर्भाग्यवश वह नदी से निकलकर, नर्म-नर्म धूप का मजा लेने के लिए किनारे पर आ बैठा| तभी एक काले कौवे ने उसे झटपट अपनी चोंच में पकड़ लिया|

हिमालय की तराई में बकरियों का एक समूह चरने आया करता था| एक दिन भोजन के लिए यहाँ-वहाँ भटकते हुए एक सियार और सियारिन ने बकरे-बकरियों के समूह को घास चरते हुए देखा|

काशी में एक कर्मकांडी पंडित का आश्रम था, जिसके सामने एक जूते गांठने वाला बैठता था। वह जूतों की मरम्मत करते समय कोई न कोई भजन जरूर गाता था। लेकिन पंडित जी का ध्यान कभी उसके भजन की तरफ नहीं गया था। एक बार पंडित जी बीमार पड़ गए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया।