विलक्षण साधना
शबरी भगवान् की परम भक्त थी| पहले वह ‘शबर’ जाति की एक भोली-भाली लड़की थी| शबर-जाति के लोग कुरूप होते थे|
शबरी भगवान् की परम भक्त थी| पहले वह ‘शबर’ जाति की एक भोली-भाली लड़की थी| शबर-जाति के लोग कुरूप होते थे|
प्राचीन समय की बात है| एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे| उनके जीवन के आखिरी क्षण निकट आ पहुँचे| आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाया| जब उनके पास सब आये, तब उन्होंने अपना पोपला मुहँ पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले- “देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?”
एक बार भगवान शंकर पार्वती जी एवं नारदजी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए । वे चलते चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गाँव में पहुचे। उनका आना सुनकर ग्राम की निर्धन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए थालियो में हल्दी अक्षत लेकर पूजन हतु तुरतं पहुँच गई । पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिडक दिया। वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी।
भगवान् श्रीकृष्ण ने सांदीपनि ऋषि से विद्याध्ययन किया था| सांदीपनि उनके विद्यागुरु थे| वे सांदीपनि ऋषि जब बाल्यावस्था में अपने गुरु के पास पढ़ते थे, तब उन्होंने गुरु की बहुत सेवा की थी|
एक क्रूर राजा अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था| इसीलिए प्रजा हमेशा उसका अहित चाहती थी| प्रजा को लगता है कि राजा या तो मर जाये या फिर उससे उसका राज्य छिन जाये|
आजादी से पूर्व की बात है| महात्मा गाँधी बिहार के नगर चम्पारन में अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ बैठे चरखा कात रहे थे| अचानक शोर की आवाज आई|
एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से प्रिया भगत कोन है?, अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भगत नराद मुनि की बात, ओर मुस्कुरा कर वोले ! मेरा सब से प्रिया भगत उस गांव का एक मामुली किसान है, यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, ओर फ़िर से एक प्रशन किया, हे भगवान आप का बडा भगत तो मै हुं, तो फ़िर सब से प्रिया क्यो नही?
किसी जंगल में एक शिकारी जा रहा था| रास्ते में घोड़े पर सवार एक राजकुमार उसको मिला| वह भी उसके साथ चल पड़ा| आगे उनको एक तपस्वी और साधु मिले|
एक बार की बात है एक जिज्ञासु साधक सच्चे आनंद की तलाश में एक महात्मा के पास गया| महात्मा जी से उसने बहुत आग्रह से प्रार्थना की कि वह सच्चे आनंद पर प्रकाश डालें| "सच्चा आनन्द" सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio Your
प्राचीन समय में राजा सुरथ नाम के राजा थे, राजा प्रजा की रक्षा में उदासीन रहने लगे थे, परिणाम स्वरूप पडौसी राजा ने उस पर चढाई कर दी, सुरथ की सेना भी शत्रु से मिल गयी थी, परिणामस्वरूप राजा सुरथ की हार हुयी, और वह जान बचाकर जंगल की तरफ़ भागा।