लाश की गवाही
पूर्व काल में हर्षपुर नाम का एक विशाल नगर था| इस समृद्ध नगर का स्वामी राजा हर्षदत्त था, जिसके सुप्रबंध के कारण नगर की प्रजा बड़े सुख से रहती थी|
पूर्व काल में हर्षपुर नाम का एक विशाल नगर था| इस समृद्ध नगर का स्वामी राजा हर्षदत्त था, जिसके सुप्रबंध के कारण नगर की प्रजा बड़े सुख से रहती थी|
एक समय एक हाथी ने एक आदमी का पीछा करना आरम्भ कर दिया| परेशान आदमी भागा, मगर हाथी निकट आता जा रहा था| आदमी ने एक सूखे कुएँ को देखा| उसमें छलाँग लगा दी| तभी नीचे घुमते हुए सर्पों पर दृष्टि गयी| पीपल की एक मोटी डाली निकट थी| आदमी ने उसे पकड़ लिया|
बात उन दिनों की है जब महाराज युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ पर राज्य करते थे। राजा होने के नाते वे काफी दान आदि भी करते थे। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि दानवीर के रूप में फैलने लगी और पांडवों को इसका अभिमान होने लगा।
बहुत समय पहले की बात है, तब दक्षिण देश के कम्बुक नाम के नगर में एक ब्राह्मण रहता था| उसका नाम था – हरिदत्त|
एक बार एक ऋषि ने अपने शिष्य से कहा कि वह एक रेंगते हुए कीड़े से ‘ओम नमः शिवाय’ कहे| शिष्य ने ऐसा ही कहा| कीड़ा अदृश्य हो गया और उसकी जगह केंचुआ दिखने लगा|
एक व्यक्ति पशु -पक्षियों का व्यापार किया करता था। एक दिन उसे पता चला कि उसके गुरु को पशु-पक्षियों की बोली की समझ है। उसने सोचा कि यदि उसे भी यह विद्या मिल जाए तो वह उसके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। वह अपने गुरु के पास गया, उनकी खूब सेवा की और उनसे पशु-पक्षियों की बोली सिखाने का आग्रह किया। गुरु ने उसे यह विद्या सिखा दी। पर यह भी चेतावनी दी कि वह अधिक लोभ न करे और अपने फायदे के लिए किसी का नुकसान न करे।
अनाज के एक भण्डार के ढेर में सारे चूहे भय में जीते थे| उस क्षेत्र में एक बड़ी और मोटी बिल्ली रहती थी| जब-जब वह भण्डार में आती थी और कुछ चूहों को पकड़ कर खा जाती थी| वे उस बिल्ली से डरे हुए थे, जो चुपके से आती और बिना आवाज किये आसानी से चूहे पकड़ लेती थी|
प्राचीन काल में तक्षशिला नगरी में चंद्रहास नाम का एक राजा राज्य करता था| उसके पुत्र सोमेश्वर और राज्य के प्रधानमंत्री के पुत्र सोमेश्वर और राज्य के प्रधानमंत्री के पुत्र इन्द्रदत्त में बहुत घनिष्टता थी|
यह उन दिनों की बात है जब शंकराचार्य 8 साल की उम्र में आश्रम में रहकर विद्याध्ययन कर रहे थे। प्रतिभा के धनी शंकराचार्य से उनके गुरु और दूसरे शिष्य अत्यंत प्रभावित थे।
प्राचीन काल की बात है, रुरु नामक एक मुनि-पुत्र था| वह सदा घूमता रहता था| एक बार वह घूमता हुआ स्थूलकेशा ऋषि के आश्रम में पहुंचा| वहां एक सुंदर युवती को देख वह उस पर आसक्त हो गया|