राम राम राम राम राम राम रट रे
राम राम राम राम राम राम रट रे ॥
भव के फंद करम बंध पल में जाये कट रे ॥
राम झरोखे बैठ के सब का मुजरा लेत ।
जैसी जाकी चाकरी वैसा वाको देत ॥
राम करे सो होय रे मनवा राम करे सो होये ॥
अर्थ न धर्म न काम रुचि, पद न चहहुं निरवान |
जनम जनम रति राम पद, यह वरदान न आन ||
मेरे मन में हैं राम मेरे तन में है राम
मेरे मन में हैं राम मेरे तन में है राम ।
मेरे नैनों की नगरिया में राम ही राम ॥
राम बिनु तन को ताप न जाई।
जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥