बारह-वर्षीय वनवास
पांडवों के निष्कासन की सूचना मिलते ही राजा द्रुपद अपने पुत्र धृष्टदयुम्न के साथ अपनी पुत्री से मिलने आए|
पांडवों के निष्कासन की सूचना मिलते ही राजा द्रुपद अपने पुत्र धृष्टदयुम्न के साथ अपनी पुत्री से मिलने आए|
प्राचीन काल की बात है| कुरुक्षेत्र में कौशिक नामक एक धर्मात्मा ऋषि रहते थे| उनके सात पुत्र थे, जिनके नाम थे- स्वसृप, क्रोधन, हिंस्त्र, विश्रुत, कवि, वाग्दुष्ट और पितृवर्ती| पिता की मृत्यु के पश्चात् वे महर्षि गर्ग के शिष्य हो गए| दैववशात् निरंतर अनावृष्टि के कारण भीषण अकाल का समय उपस्थित हुआ|
किसी नगर में एक सेठ रहता था| उसके पास बहुत धन था| उसकी तिजोरियां हमेशा मोहरों से भरी रहती थीं, लेकिन उसका लोभ कम नहीं होता था| जैसे-जैसे धन बढ़ता जाता था, उसकी लालसा और भी बढ़ती जाती थी|
दुख और पीड़ा जीवन के अनिवार्य अंग हैं। मनुष्य का उससे बिल्कुल अछूते रहने की कल्पना असंभव है। जीवन में सुख के साथ दुख भी अपने क्रम से आएगा ही। अच्छी परिस्थितियों के बाद विपरीत परिस्थितियों का यह चक्र जीवनभर यूं ही चलता रहेगा। आज मनुष्य विकास की उस अवस्था तक पहुंच गया है, जहां से उसे निरंतर विकासपथ पर आगे ही आगे बढ़ते जाना है।
एक कौआ जब-जब मोरों को देखता, मन में कहता- भगवान ने मोरों को कितना सुंदर रूप दिया है। यदि मैं भी ऐसा रूप पाता तो कितना मजा आता। एक दिन कौए ने जंगल में मोरों की बहुत सी पूंछें बिखरी पड़ी देखीं। वह अत्यंत प्रसन्न होकर कहने लगा- वाह भगवान! बड़ी कृपा की आपने, जो मेरी पुकार सुन ली। मैं अभी इन पूंछों से अच्छा खासा मोर बन जाता हूं।
दुर्योधन सदा से ही ही पांडवों को घृणा की दृष्टि से देखता था, परन्तु इंद्रप्रस्थ से लौटने के बाद से तो उसके क्रोध और ईर्ष्या की कोई सीमा नहीं थी| राजसूय यज्ञ में युधिष्ठिर को सर्वशक्तिमान राजा के रूप में प्रतिष्ठा पाते देख उसका हृदय ईर्ष्या से जल रहा था|
ऋषभ के पुत्र भरत थे, जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा| भारत के पुत्र शतश्रृंग हुए, उनके आठ पुत्र और एक पुत्री थी| पुत्रों के नाम इंद्रद्वीप, कसेरु, ताम्रद्वीप, गभस्तिमान, नाग, सौम्य, गंधर्व और वरुण थे| राजर्षि शतश्रृंग की कन्या का मुख बकरी के मुख की तरह था| ऐसा होने का कारण उसका पुनर्जन्म में बकरी-शरीर का होना था|
बचपन में गांधीजी को घर के लोग ‘मोनिया’ कहकर पुकारते थे| मोनिया बड़ा ही शरारती था| एक बार बच्चों ने मिलकर मंदिर के खेल के ठाकुरजी को झूला-झूलाने का तय किया| ऐसे खेलों में वे मिट्टी की मूर्ति बना लेते थे, लेकिन इस बार उन्होंने सोचा कि लक्ष्मी नारायण के मंदिर से कुछ असली मूर्तियां उठा लाएं| फिर क्या था! पांच-छ: बच्चों की टोली मंदिर की ओर चल दी| निश्चय हुआ कि और बालक तो इधर-उधर छिपे रहें और सबसे छोटा ‘चंदू’ सिंहासन पर से मूर्तियां उठा लाए|
एक दिन गुरुनानक घूमते हुए उज्जयिनी पहुंचे| उनका नाम सुनकर एक सेठ उनके पास आया| उसके गले में रुद्राक्ष की माला पड़ी थी और माथे पर तिलक लगा था| वह गुरुनानक के लिए तरह-तरह के स्वादिष्ट भोजन का थाल लाया था| गुरुनानक ने थाल की ओर देखा और खाना खाने से इंकार कर दिया|
एक दुकानदार को नौकर की सख्त जरूरत थी। उसने अपने मिलने-जुलने वालों से कह रखा था कि कोई पढ़ा-लिखा, ईमानदार आदमी मिल जाए तो बताना, क्योंकि मैं अकेला हूं। जब कभी बाहर सामान लेने जाता हूं या किसी अन्य काम से यहां-वहां जाता हूं तो मुझे दुकान बंद ही करनी पड़ती है। कहते हैं ग्राहक और मौत का क्या ठिकाना? कब आए और लौट जाए।