HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 77)

अंगुलिमाल नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था| वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट लेता था और उनकी माला बनाकर पहनता था| इसी कारण उसका यह नाम पड़ा था| मुसाफिरों को लूट लेना उनकी जान ले लेना, उसके बाएं हाथ का खेल था| लोग उससे बहुत डरते थे| उसका नाम सुनते ही उनके प्राण सूख जाते थे|

मोतीराम महाजन अव्वल नंबर का कंजूस था| एक दिन शाम को जब वह घर लौट रहा था तो रास्तेभर यही सोचता रहा कि उसकी पत्नी और बच्चे बहुत खर्च करते है| यदि वह अधिक समय घर से बाहर रहेगा तो वो लोग उसको कंगला बनाकर ही छोडेंगे| श्रीमती जी दिन भर खरीददारी करती रहती है और बच्चे भी दिनभर कुछ-न-कुछ खाते-पीते रहते है| यह स्थिति तो तब है जब कड़ी निगरानी रखी जाती है|

महावीर स्वामी तपस्या में लीन थे। एक दुष्ट उनके पीछे लग गया। कई बार उसने महावीर स्वामी का अपमान किया, लेकिन वे सदैव शांत ही रहते। उन्होंने तो संसार को प्रेम का पाठ पढ़ाया था। वे कहते थे सदा प्रेम करो, प्रेम में ही परमतत्व छिपा है। जो तुम्हारा अहित करे उसे भी प्रेम करो।

अठारह-दिवसीय युद्ध समाप्त हो चूका था| पांडव धृतराष्ट्र के पास गए और उनके चरणों पर गिरकर क्षमा माँगी| धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को गले लगा लिया, फिर भीम को बुलाया| भीम के महाराज के पास पहुंचने से पूर्व ही कृष्ण ने शीघ्रता से मनुष्य के आकार का एक लोहे का पुतला, जन्म से अंधे पर अत्यधिक शक्तिशाली, धृतराष्ट्र के हाथों में पकड़ा दिया|

ढाई हजार साल पहले की घटना है| बुद्ध एक गांव में ठहरे थे| एक आदमी उनके पास आया और बोला – “भंते, आप तीस साल से लोगों को शांति, सत्य और मोक्ष की बात समझा रहे हैं, लेकिन कितने लोग हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया?”

एक मजदूर था अवतार। बिल्कुल अकेला, न पत्नी, न बच्चे। कभी आवश्यकता होती तो मजदूरी कर लेता। एक बार जेठ की भरी दोपहर में जब उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, वह मजदूरी ढूंढ़ने सड़कों पर निकल पड़ा। तभी एक तांगा आकर रुका और उसमें से एक व्यक्ति बाहर आया।

दोनों सेनाओं में सत्रह दिनों से युद्ध चल रहा था| कर्ण की मृत्यु के बाद राजा शल्य को कौरव सेना का संचालन बनाया गया| संग्राम के अठारहवें दिन युधिष्ठिर और शल्य का आमना-सामना हुआ और युधिष्ठिर ने शल्य का वध कर दिया| शकुनि और उसका पुत्र, नकुल और सहदेव के हाथों मारे गए|

राजा हरिश्चन्द्र के कोई संतान न थी| उन्होंने पर्वत और नारद- इन दो ऋषियों से इसका उपाय पूछा| देवर्षि नारद ने उन्हें वरुणदेव की आराधना करने की सलाह दी| राजा ने वरुण की आराधना की और पुत्र-प्राप्ति कर उससे उनके यजन की भी प्रतिज्ञा की| इससे उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ और उसका नाम रोहित रखा|