HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 76)

एक समय की बात है -एक राजा था, जिसे अपने बुद्धिमान होने का बड़ा घमंड था| उसका विश्वास था कि पूरे राज्य में एक भी ऐसा नहीं है, जो उसे धोखा देकर साफ निकल जाए| एक दिन यह बात उसने मंत्रियों से कही| सबने हामी भार दी, सिवाय एक के|

एक बहुत बड़े ठेकेदार के यहां हजारों मजदूर काम करते थे। एक बार उस क्षेत्र के मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर दी। महीनों हड़ताल चलती रही।

एक सेठ था| उसके पास बहुत संपत्ति थी| वह अपने करोबार से बहुत ही संतुष्ट था| अचानक एक दिन उसने हिसाब लगाया तो पता चला कि वह संपत्ति उसके और उसके बच्चों तक के लिए ही काफी होगी, लेकिन बच्चों के बच्चों का क्या होगा?

बहुत पहले एक छोटे-से गांव में एक एक गरीब, मगर भला ब्राह्मण रहता था| वह देवी का परम भक्त था और नित्य ही दुर्गा का नाम १०८ बार लिखे बिना अन्न-जल कुछ भी ग्रहण नहीं करता था| संपन्न परिवारों में शादी-ब्याह या फिर अंतिम संस्कार करवाना ही उसकी जीविका का एकमात्र साधन था| परंतु रोज तो गांव में ऐसा होता नहीं था|

धनपुर नगर में घासीराम नाम का एक महाकंजूस रहता था| वह राजा के दरबार का खजांची था| एक दिन वह घर लौट रहा था कि रास्ते में उसने एक आदमी को पूड़े खाते हुए देखा तो उसका मन मचल गया, ‘कितने दिन हो गए, मुझे पूड़े खाएँ| आज मैं भी अपनी पत्नी से पूड़े बनवाकर खाऊँगा| लेकिन उस पर तो काफ़ी खर्चा आ जाएगा|’

बाबू प्रेमनाथ रेलवे के बड़े अधिकारी थे। रेलवे की ओर से उन्हें एक आलीशान बंगला भी मिला हुआ था। बाबू प्रेमनाथ ने वहां कुछ पौधे लगाए। उन्हें बागवानी का शौक था, इसलिए जब भी समय मिलता वे पेड़-पौधों की देखरेख में लग जाते।

कुछ वर्ष बीतने के बाद हस्तिनापुर में कृष्ण और बलराम की मृत्यु का समाचार पहुँचा| यह सुनकर पांडव बहुत दुखी हुए| क्रमशः राज्य और संसार से उनका मोह कम होता जा रहा था| अंततः पांडवों ने निश्चय किया कि वे राजपाट त्यागकर तीर्थयात्रा पर जायेंगें और फिर वहां से हिमालय की गोद में|