HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 66)

एक साधु व डाकू यमलोक पहुंचे। डाकू ने यमराज से दंड मांगा और साधु ने स्वर्ग की सुख-सुविधाएं। यमराज ने डाकू को साधु की सेवा करने का दंड दिया। साधु तैयार नहीं हुआ। यम ने साधु से कहा- तुम्हारा तप अभी अधूरा है।

इस सृष्टि से पूर्वसृष्टि की बात है| जाम्बवती श्रीसोम की पुत्री थी| श्रीसोम श्री विष्णु की सेवा में लगे रहते थे| उनकी पुत्री जाम्बवती भी पिता का अनुशरण करती थी|

किसी नगर में गंगा के किनारे एक बूढ़ा आदमी रहता था| उसने अपनी छोटी-सी झोंपड़ी बना ली थी और एक कछुआ पाल रखा था| वह दोपहर को रोटी मांगने जाता तो कुछ चने भी ले आता और उन्हें भिगोकर कछुए को खिला देता|

एक बार पंडित परमसुख को दानस्वरूप एक बछड़ा मिला| उसने बछड़े का नाम ‘नंदीश्वर’ रखा और प्यार से लालन-पोषण करके उसे तंदुरुस्त बैल बना दिया| बैल भी परमसुख का काफ़ी ख्याल रखता था क्योंकि उसने उसे पिता समान प्यार दिया था|

सतपुड़ा के वन प्रांत में अनेक प्रकार के वृक्ष में दो वृक्ष सन्निकट थे। एक सरल-सीधा चंदन का वृक्ष था दूसरा टेढ़ा-मेढ़ा पलाश का वृक्ष था। पलाश पर फूल थे। उसकी शोभा से वन भी शोभित था। चंदन का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार सरल तथा पलाश का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार वक्र और कुटिल था, पर थे दोनों पड़ोसी व मित्र। यद्यपि दोनों भिन्न स्वभाव के थे। परंतु दोनों का जन्म एक ही स्थान पर साथ ही हुआ था। अत: दोनों सखा थे।

विदर्भ देश में श्वेत नामक राजा राज्य करते थे| वे सतर्क होकर राज्य का संचालन करते थे| उनके राज्य में प्रजा सुखी थी| कुछ दिनों के बाद राजा के मन में वैराग्य हो आया| तब वे अपने भाई को राज्य सौंपकर वन में तपस्या करने चले गये|

पुराने जमाने की बात है| एक आदमी चोरी के अपराध में पकड़ा गया| उसे राजा के सामने पेश किया गया| उन दिनों चोरों को फांसी की सजा दी जाती थी| अपराध सिद्ध हो जाने पर इस आदमी को भी फांसी की सजा मिली|

बसंतपुर में बढ़इयों का एक मुहल्ला था| बढ़ई रोज नावों से नदी पार करके जंगल में जाते और अपने काम के लिए लकड़ी काटकर लाते थे| उसी गाँव में दो मित्र मोहन और रामू रहा करते थे| गाँव से जंगल और जंगल से गाँव आना-जाना उनका नियम था| काम की कमी न थी|

सुकरात को जहर दिए जाने के एक दिन पहले उनके मित्र व शिष्य उनसे मिलने पहुंचे। उनके शिष्य क्रेटो ने कहा कि हम आपको यहां से भगाने आए हैं। पर सुकरात किसी कीमत पर भी भागने को तैयार नहीं हुए।