HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 117)

राजा को उदास और दुखी देख शैव्या ने कहा, “स्वामी! आप अपने को इस प्रकार लांछित न करें| झूठे लोग श्मशान की भांति वर्जित होते हैं| झूठे मनुष्य के समस्त अग्निहोत्र, अध्ययन, दान और पुरुषार्थ निष्फल हो जाते हैं|

एक सेठ था| उसके सात बेटे थे| उन सातों में छः का विवाह हो चूका था| अब सातवें बेटे का विवाह हुआ| उसका विवाह जिस लड़की से हुआ, वह अच्छे समझदार माँ-बाप की बेटी थी| माँ-बाप ने उसकी अच्छी शिक्षा दी हुई थी|

एक गांव में एक जार रहता था | उसके तीन बेटे थे | वह चाहता था कि उसके बेटों का विवाह बहुत सुंदर और सुशील लड़कियों से हो | परंतु अपनी इच्छानुसार लड़कियां मिलना आसान नहीं था |

अत्यधिक विचलित होकर राजा हरिश्चंद्र उठ खड़े हुए और लोगो को पुकार-पुकार कर कहने लगे, “नगरवासियों! मेरी बात सुनो| यह मत पूछियेगा कि मै कौन हूं|

एक महात्मा थे| वे पैदल घूम-घूमकर सत्संग का प्रचार किया करते थे| वे एक गांव में जाते, कुछ दिन ठहरकर सत्संग करते और फिर वहाँ से दूसरे गांव चल देते| घूमते घूमते वे एक गांव में पहुँचे| गांव में सब जगह प्रचार हो गया कि महाराज जी पधारे हैं, आज अमुक जगह सत्संग होगा| सत्संग के समय बहुत से भाई बहन इकट्ठे हुए|

इंग्लैंड के एक गांव में मार्शल नामक फलों का व्यापारी रहता था | उसका व्यापार बहुत अच्छा था | मार्शल का बेटा थामस पढ़-लिख कर अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा था | वह खूब मेहनती और होशियार था | पिता को अपने पुत्र की काबिलियत पर गर्व था |

ब्राह्मण वेशधारी विश्वामित्र ने शैव्या को अपने साथ चलने को कहा| तभी रोहिताश्व ने अपनी माँ का आंचल पकड़ लिया| यह देखकर विनम्र दिखने वाला ब्राह्मण चिल्लाया, “ऐ लड़के! साड़ी का पल्ला छोड़ दे| मैंने तेरी माँ को ख़रीदा है, तुझे नहीं|”

एक बहुत धनी सेठ था| वह सुबह जल्दी उठकर नदी में स्नान करके घर आकर नित्य-नियम करता था| ऐसे वह रोजाना नहाने नदी पर आता था| एक बार एक अच्छे संत विचरते हुए वहाँ घाट पर आ गये| उन्होंने कहा-‘सेठ! राम-राम!’ वह बोला नहीं तो बोले-‘सेठ! राम-राम!’ ऐसे दो-तीन बार बोलने पर भी सेठ ‘राम-राम’ नहीं बोला| सेठ ने समझा कि कोई मांगता है|

एक समय की बात है जब बालक शुकदेव बचपन में ही वन के लिए चलने लगे, तब उनके पिता व्यास बोले- “अभी तो तुम्हारे सब संस्कार पूरे नहीं हुए, यहाँ तुम घर-परिवार को छोड़ते हो?” बालक शुकदेव ने कहा- “मैं इन्हीं संस्कारों से तो संसार में अटका हुआ हूँ|