HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 107)

एक संत ने एक रात स्वप्न देखा कि उनके पास एक देवदूत आया है। देवदूत के हाथ में एक सूची है। उसने कहा, ‘यह उन लोगों की सूची है, जो प्रभु से प्रेम करते हैं।’ संत ने कहा, ‘मैं भी प्रभु से प्रेम करता हूं। मेरा नाम तो इसमें अवश्य होगा।’ देवदूत बोला, ‘नहीं, इसमें आप का नाम नहीं है।’

जंगल में ढूढ़ता-ढांढ़ता राजा उस तपस्वी के निकट पंहुचा जो घोर तपस्या कर रहा था| उसका मुख दूसरी ओर था| इसलिए राजा उसे पहचान नहीं पाया कि वह कौन है|

सूरजगढ़ देश में एक राजा था हुकुम सिंह | उसके राज्य में सब तरफ सुख-शांति थी | प्रजा बहुत मेहनती और सुखी थी | चारों ओर हरियाली और खुशहाली का साम्राज्य था |

राजा हरिश्चंद्र के शब्द सुनकर तपस्वी उठ खड़ा हुआ और क्रोधित होता हुआ बोला, “ठहर जा दुरात्मन! अभी तुझे तेरे अहंकार का मजा चखाता हूं|”

एक बार राजा श्रोणिक शिकार करने जंगल में गए। वहां उन्हें यशोधर मुनि तपस्या करते हुए दिखे। राजा को लगा कि उनकी वजह से उन्हें शिकार करने को नहीं मिलेगा। तभी सामने एक लंबा सांप आता दिखाई दिया।

कुछ देर शांत रहने के बाद उन्होंने राजा हरिश्चंद्र से पूछा, “राजन! तुम पहले यह बताओ कि दान किसे देना चाहिए, रक्षा किसकी करनी चाहिए और युद्ध किससे करना चाहिए?”

एक बार युधिष्ठिर ने विधि-विधान से महायज्ञ का आयोजन किया। उसमें दूर-दूर से राजा-महाराजा और विद्वान आए। यज्ञ पूरा होने के बाद दूध और घी से आहुति दी गई, लेकिन फिर भी आकाश-घंटियों की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ी। जब तक घंटियां नहीं बजतीं, यज्ञ अपूर्ण माना जाता। महाराज युधिष्ठिर को चिंता हुई। वह सोचने लगे कि आखिर यज्ञ में कौन सी कमी रह गई कि घंटियां सुनाई नहीं पड़ीं। उन्होंने भगवान कृष्ण से अपनी समस्या बताई।

किसी नगर में एक सुरक्षित ब्राह्मण कुसंस्कारों के कारण चोरी करने लगा था| एक बार उस नगर में व्यापार करने के लिए चार सेठ आए| चोर ब्राह्मण अपने शास्त्रज्ञान के प्रभाव से उन सेठों का विश्वास प्राप्त कर उनके साथ ही रहने लगा|