HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 103)

एक गुरुकुल में दो राजकुमार पढ़ते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। एक दिन उनके आचार्य दोनों को घुमाने ले गए। घूमते हुए वे काफी दूर निकल गए। तीनों प्राकृतिक शोभा का आनंद ले रहे थे। तभी आचार्य की नजर आम के एक पेड़ पर पड़ी। एक बालक आया और पेड़ के तने पर डंडा मारकर फल तोड़ने लगा। आचार्य ने राजकुमारों से पूछा, ‘क्या तुम दोनों ने यह दृश्य देखा?’

कुत्तों के एक दल को कई दिनों तक कुछ भी खाने को नहीं मिला| भूखे कुत्ते भोजन की खोज में इधर-उधर भटकते रहे| भूख से उनकी हालत दयनीय हो गयी थी| अंत में वे एक तालाब के पास पहुँचे, जिसके तल में चमड़ा फुलाया गया था| चमड़े को निकालने का उन्होंने अनथक प्रयास किया, मगर वे सफल न हुए|

बहुत समय पहले हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में एक दक्षिण भारतीय ब्राह्मण रहता था| उसके तीन बेटे थे| युवा होने पर ब्राह्मण ने उन्हें विद्या प्राप्त करने के लिए राजगृह भेज दिया| जब वे तीनों अपनी शिक्षा पूरी करके घर लौटे तो कुछ ही दिन पश्चात उनके पिता का देहांत हो गया|

साबरमती आश्रम के लिए जगह की तलाश में गांधीजी एक दिन वर्धा से पांच किलोमीटर ऊंची पहाड़ी पर गए। वहां एक झुग्गी बस्ती थी। गांधीजी को पता चला कि यह एक हरिजन बस्ती है। उन्होंने कहा, ‘साबरमती आश्रम के लिए यह उपयुक्त जगह है।’ जमनालाल बजाज उनके साथ थे। उन्होंने कहा, ‘लेकिन यहां बहुत गंदगी है।’ गांधी जी बोले, ‘यहां देश की आत्मा बसती है, इसलिए हरिजन बस्ती के फायदे के लिए यहां आश्रम बनाना ठीक रहेगा।’

वृद्ध और अंधे महर्षि च्यवन ने अपनी युवा पत्नी सुकन्या से कहा, “तुम युवा हो और एक लम्बा जीवन तुम्हारे सामने है| तुम किसी युवक से विवाह कर लो|”

प्राचीन काल में गंगातट पर बसे एक गांव बहुसुवर्ण में गोविंद दत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था| वह प्रकांड विद्वान और शास्त्रों का ज्ञाता था| उसकी पत्नी अग्निदत्ता परम पतिव्रता स्त्री थी|

प्राचीन समय की बात है| युवक मूलशंकर, ‘ब्रह्मचारी शुद्ध चैतंय’ बनकर ज्ञानार्जन के लिए, सच्चे शिव की खोज में किसी अच्छे गुरु से दीक्षा ग्रहण करने के लिए देशाटन कर रहे थे कि एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ लोग गाजे-बाजे के साथ जा रहे थे|

महाराज युधिष्ठिर ध्यानमग्न बैठे थे। जब उन्होंने आंखें खोलीं, तो द्रौपदी ने कहा, ‘धर्मराज! आप भगवान का इतना ध्यान करते हैं, उनका भजन करते हैं, फिर उनसे यह क्यों नहीं कहते कि हमारे संकटों को दूर कर दें। इतने सालों से हम वन में भटक रहे हैं। इतना कष्ट होता है, इतना क्लेश। कभी पत्थरों पर रात बितानी होती है तो कभी कांटों में। कहीं प्यास बुझाने को पानी नहीं मिलता, तो कभी भूख मिटाने को भोजन नहीं। इसलिए भगवान से कहिए कि वे हमारे कष्टों का अंत करें।’

जब शिक्षा पूरी हो गयी, तब शिष्यों ने आचार्य से दक्षिणा माँगने के लिए कहा| पहले तो आचार्य ने माँगना न चाहा, किन्तु शिष्यों के बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने कहा, “कोई ऐसी चीज लाओ, जब कोई देखे नहीं|”

प्राचीन काल में कान्यकुब्ज (वर्तमान कन्नौज) नगर में शूरदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था| वह सौ गांवों का स्वामी था|