अध्याय 231
1 [वै]
गन्धर्वैस तु महाराज भग्ने कर्णे महारथे
संप्राद्रवच चमूः सर्वा धार्तराष्ट्रस्य पश्यतः
1 [वै]
गन्धर्वैस तु महाराज भग्ने कर्णे महारथे
संप्राद्रवच चमूः सर्वा धार्तराष्ट्रस्य पश्यतः
1 [धृ]
संप्रमृद्य महत सैन्यं यान्तं शैनेयम अर्जुनम
निर्ह्रीका मम ते पुत्राः किम अकुर्वत संजय
1 [कुन्ती]
कुतॊ मूलम इदं दुःखं जञातुम इच्छामि तत्त्वतः
विदित्वा अपकर्षेयं शक्यं चेद अपकर्षितुम