HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 96)

किसी जमाने में एक राजा था| वह बड़ा नेक था| अपनी प्रजा की भलाई के लिए प्रयत्न करता रहता था| उसने अपने राज्य में घोषणा करा दी थी कि शाम तक बाजार में किसी की कोई चीज न बचे, अगर बचेगी तो वह स्वयं उसे खरीद लेगा, इसलिए शाम को जो भी चीज बच जाती, वह उसे खरीद लेता|

एक बार की बात है| एक माली ने एक बगीचे में गुलाब के फूल लगाए| फूल देखकर वहाँ एक बुलबुल आने लगी, वो उन्हें नोच लेती थी, माली ने बार-बार उसे भगाया, परंतु वह बार-बार आकर फूल नोच जाती थी|

एक राजा था, उसका नाम था श्रेणिक| उसकी चेतना नाम की एक रानी थी, एक बार वे दोनों भगवान महावीर के दर्शन करके लौट रहे थे तो रानी ने देखा, भंयकर शीत में एक मुनि तप में लीन हैं| उनकी कठोर साधना के लिए उसने मन-ही-मन उन्हें बारम्बार प्रणाम किया|

एक चोर ने राजा के माल में चोरी की| राजा के सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने देखा उसके पदचिन्हों का पीछा किया| चोर के पदचिन्हों को देखते-देखते वे नगर से बाहर आ गये| पास में एक गांव था| उन्होंने चोर के पदचिन्ह गाँव की ओर जाते देखे| सिपाहियों ने गाँव के बाहर चक्कर लगाकर देखा कि चोर गाँव से बाहर नहीं गया, गाँव में ही है|

बाद लगभग ढाई हज़ार वर्ष पहले की है| उस समय देश के कई हिस्सों में अकाल-दुर्भिक्ष की स्थिति पैदा हो गई| वर्षा न होने से सूखा पड़ गया| भूख के कारण गरीब जनता त्राहि-त्राहि कर उठी|

दिल्ली का एक बादशाह था| जनता के सुख-दुःख का वह सदा ख्याल रखता था| प्रजा के सुख-दुःख का ख्याल रखने के कारण ही उसे एक दिन अधिक रात बीतने पर भी नींद नहीं आई|

बात उस समय की है, जब भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था| एक बालक था| उसके अंदर देश-भक्ति कूट-कूटकर भरी थी| वह उन लोगों की बराबर मदद करता था, जो आजादी के दीवाने थे और गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए जी-जान से जुटे थे|