HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 71)

दो संन्यासी थे। एक वृद्ध और एक युवा। दोनों साथ रहते थे। एक दिन महीनों बाद वे अपने मूल स्थान पर पहुंचे। जो एक साधारण-सी झोपड़ी थी। किंतु जब दोनों झोपड़ी में पहुंचे तो देखा कि वह छप्पर भी आंधी और हवा ने उड़ाकर न जाने कहां पटक दिया।

भूदान- यज्ञ के दिनों की बात है| विनोबाजी की पद-यात्रा उत्तर प्रदेश में चल रही थी| उनके साथ बहुत थोड़े लोग थे| मीराबहन के आश्रम ‘पशुलोक’ से हम हरिद्वार आ रहे थे| विनोबाजी की कमर और पैर में चोट लगी थी, उन्हें कुर्सी पर ले जाया जाता था, पर बीच-बीच में वे कुर्सी से उतरकर पैदल चलने लगते थे|

एक बार की बात है| एक लड़का था| अक्ल के मामले में थोड़ा-सा कमजोर| एक दिन खेत से लौटते समय उसने एक आदमी को एक गधी लेकर जाते हुए देखा| लड़के को गधी बहुत अच्छी लगी| उसने मालिक से पूछा, “तुम इस गधी को कितने में बेचोगे? मै इसे खरीदना चाहता हूं|”

जहांगीर के राज्य में चंदूशाह नाम का एक सेठ था। उसने सिख गुरु अर्जुन देव के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे अपने पुत्र हरगोविंद का विवाह उसकी पुत्री के साथ कर दें। गुरु अर्जुन देव ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इस पर वह नाराज हो गया और बदले का अवसर खोजने लगा।

मुस्लिम संतों में एक बहुत बड़ी संत हुई हैं राबिया| उनमें ईश्वर-भक्ति कूट-कूटकर भरी थी, वे हर घड़ी प्रभु के चरणों में लौ लगाए रहती थीं| सबको उसी का बंदा मानकर उन्हें प्यार करती थीं और जी-जान से उनकी सेवा करती थीं|

बहुत समय पहले बंगाल में महाराज कृष्णचन्द्र का राज्य था| उनके दरबार में बहुत सारे विदूषक थे| सबसे ज्यादा लोकप्रिय था-गोपाल| गोपाल नाई था लेकिन सब लोग उसे गोपाल भांड कहकर बुलाते थे|

भारत के पूर्वी हिस्से में उड़ीसा नाम का राज्य है| महानदी के मुहाने पर आसपास की जमीन बहुत उपजाऊ है-धान के खेत, जंगल और ताजा हरी घास, जिसे वहां के मवेशी भरपेट खाते हैं|

यह सच्ची घटना ओडीसा की है। उर्मिला दास अपने छोटे से परिवार पति और दो बच्चों में प्रसन्न थी। वे निर्धन थे किंतु गुजारे लायक कमा लेते थे। कम साधनों में भी पर्याप्त संतुष्टि का भाव उस परिवार में था और इसीलिए वे आनंद से जीवन व्यतीत कर रहे थे। किंतु एक दिन ऐसा आया कि इस परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग गया।

गांधीजी का जन्म-दिन सादगी के साथ मनाया जाता था| एक बार सेवाग्राम में जब उनका जन्म-दिन मनाया गया तो आश्रम के भाई-बहनों के अलावा इधर-उधर के भी काफी लोग जमा हो गए|

त्रिपुरा के जंगलो में एक शुकरी रहती थी| अपने बच्चो के साथ, शुकरी खुशी-खुशी दिन बिता रही थी| एक दिन जंगल में अपने बच्चों के लिए भोजन ढूढ़ते हुए, उसने एक बाघ के बच्चे के रोते हुए देखा|