आदिशक्ति ललिताम्बा
जब विश्व पर घोर संकट आता है और उसके प्रतिकारक कोई उपाय नहीं रहता, जब आदिशक्ति का आविर्भाव होता है| इसी प्रकार एक बार भण्डासुर से सारा विश्व त्रस्त हो गया था, तब उन्होंने ललिता के के रूप में लोकोद्धार का कार्य किया|
जब विश्व पर घोर संकट आता है और उसके प्रतिकारक कोई उपाय नहीं रहता, जब आदिशक्ति का आविर्भाव होता है| इसी प्रकार एक बार भण्डासुर से सारा विश्व त्रस्त हो गया था, तब उन्होंने ललिता के के रूप में लोकोद्धार का कार्य किया|
एक व्याकरण का पण्डित नाव में बैठा था| उसने मल्लाह से व्याकरण की बड़ी प्रशंसा की और फिर उससे पूछा – “क्यों भाई, क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है?”
काशी में पावन सलिला गंगा के तट पर एक मुनि का बहुत बड़ा आश्रम था| उसमें रहकर अनेक शिष्य वेद-वेदांग की शिक्षा ग्रहण करते थे| शिष्य में एक का नाम दुष्कर्मा था| वह सब शिष्यों में सबसे ज्यादा आज्ञाकारी, समझदार और दयालु प्रवृति का था|
एक फकीर श्मशान में बैठा था। थोड़ी देर बाद वहां दो अलग-अलग समूहों में कुछ लोग मृत देह लेकर आए और चिता सजाकर उन्हें अग्नि को समर्पित कर दिया। जब चिताएं ठंडी हो गईं तो लोग वहां से चले गए। तब वह फकीर उठा और अपने हाथों में दोनों चिताओं की राख लेकर बारी-बारी से उन्हें सूंघने लगा। लोगों ने आश्चर्य से उसके इस कृत्य को देखा और उसे विक्षिप्त समझा। एक व्यक्ति से रहा नहीं गया।
कांचीपुर में वज्र नामक एक चोर था| उस चोर का यह नाम विशेष सार्थक था| किसी की सम्पत्ति चुराने पर उसके स्वामी को जो कष्ट होता है, उसे सहृदय व्यक्ति ही आँक सकता है| चोर का हृदय वस्तुतः वज्र का बना होता है|
एक राजा था| उस पर उसके दुश्मन ने हमला किया| राजा हार गया और अपने राज्य से भागकर एक गुफा में जा छिपा| अपना राज्य पाने की उसे कोई आशा न रही| गुफा में बैठा वह बीते दिनों की याद करता और बेचैन होता|
कंचनपुर के निकट घने जंगल में एक धूर्त साधु वेशधारी रहता था| कंचनपुर का जागीदार रामप्रताप उसकी खूब सेवा किया करता था| साधु वेशधारी पर उसका अटूट विश्वास था|
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर जब अंडमान जेल में थे, तब उनके पास न कलम थी और न कागज। उनके सृजनशील मानस में कई विचार उठते किंतु उन्हें लिपिबद्ध कैसे करें? एक दिन ऐसे ही वे एकांत कोठरी में बैठे सोच में डूबे थे कि उन्हें इस समस्या का समाधान सूझ गया।
मृतात्मा की सद्गति हेतु पिण्डदानादि श्रद्धा कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं| पुन्नामक नरक से पिता को बचाने के कारण ही आत्मज पुत्र कहा जाता है| पुत्र का मुख देखकर पिता पैतृक ऋण से छूट जाता है और पौत्र के स्पर्शमात्र से यमलोक आदि का उल्लंघन कर जाता है|
एक फकीर था| वह भीख मांगकर अपनी गुजर-बसर किया करता था| भीख मांगते-मांगते वह बूढ़ा हो गया| उसकी आंखों से कम दिखने लगा| एक दिन भीख मांगते हुए वह एक जगह पहुंचा और आवाज लगाई| किसी ने कहा – “आगे बढ़ो! यह ऐसे आदमी का घर नहीं है, जो तुम्हें कुछ दे सकें|”