HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 50)

एक वैद्य था| वह अपने साथ एक आदमी को रखता था| एक दिन वे एक गाँव से रवाना हुए तो किसी बात को लेकर वैद्य ने उस आदमी की ताड़ना की-‘अरे, तू जानता नहीं, पहले तू कैसा था? तू तो गधा था|

एक बार की बात है, राजा बलि समय बिताने के लिए एकान्त स्थान पर गधे के रूप में छिपे हुए थे। देवराज इन्द्र उनसे मिलने के लिए उन्हें ढूँढ रहे थे। एक दिन इन्द्र ने उन्हें खोज निकाला और उनके छिपने का कारण जानकर उन्हें काल का महत्व बताया। साथ ही उन्हें तत्वज्ञान का बोध कराया।

एक मूर्तिकार था| उसने अपनी कला अपने बेटे को भी सिखाई| पिता-पुत्र दोनों शहर जाते और मूर्तियाँ बेचते| पिता को अपनी मूर्ति के डेढ़ रुपये मिलते, जबकि बेटे को मात्र पचास पैसे|

एक राजा था| उसने सुना कि राजा परीक्षित् ने भगवती की कथा सुनी तो उनका कल्याण हो गया| राजा के मन में आया कि अगर मैं भी भागवती की कथा सुन लूँ तो मेरा भी कल्याण हो जायगा|

समुद्र के तट पर एक स्थान पर एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था| कुछ दिनों बाद टिटिहरी ने गर्भ धारण किया और जब उसके प्रसव का समय आया तो उसने अपने पति से कहा, ‘कान्त! अब मेरा प्रसव-काल निकट आ रहा है, इसलिए आप किसी ऐसे सुरक्षित स्थान की खोज कीजिए, जहां मैं शान्ति पूर्वक अपने बच्चों को जन्म दे सकूं|’

प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपनी शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरी शिकारी पक्षी मिल गया।

एक साधु था| चलते-चलते वह एक शहर के पास पहुँचा तो शहर का दरवाजा बन्द हो गया| रात हो गयी थी| वह साधु दरवाजे के बाहर ही सो गया| दैवयोग से उस दिन उस शहर के राजा का शरीर शान्त हो गया था|

किसी वन में मदोत्कट नाम का सिंह निवास करता था| व्याघ्र, कौआ और सियार ये तीन उसके नौकर थे| एक दिन उन्होंने एक ऐसे ऊंट को देखा जो अपने निरोह से भटककर उनकी ओर आ गया था| उसको देखकर सिंह कहने लगा, ‘अरे वाह, वह तो विचित्र जीव है| जाकर पता तो लगाओ कि वह वन्य प्राणी है अथवा की ग्राम्य प्राणी|’