सन्यासी और चूहा
सन्यासी के किसी राज्य में महिलारोप्य नाम का एक नगर था| उस नगर से थोड़ी दूर पर भगवान शंकर का एक मंदिर बना हुआ था| उस मठ में तामचूड़ का एक सन्यासी निवास करता था| नगर में भिक्षादन कर वह अपनी जीविका चलाया करता था| भोजन से बचे हुए अन्न को वह भिक्षापत्र में रखकर उस पात्र का खूटी पर लटका दिया करता था, इस प्रकार वह निश्चित होकर रात्री में सो जाया करता था प्रात:कल वह उस अन्न को उस मन्दिर में कार्यरत श्रमिको को दे दिया करता था|