किसान के बेटे
एक गाँव में बिरजू नामक किसान रहता था बिरजू के चार बेटे थे| बिरजू बहुत मेहनती और दूरदर्शी स्वभाव का था जबकि उसके बेटे निकम्मे कामचोर और आलसी स्वभाव के थे|
एक गाँव में बिरजू नामक किसान रहता था बिरजू के चार बेटे थे| बिरजू बहुत मेहनती और दूरदर्शी स्वभाव का था जबकि उसके बेटे निकम्मे कामचोर और आलसी स्वभाव के थे|
“जब महाराज सगर को बहुत दिनों तक अपने पुत्रों की सूचना नहीं मिली तो उन्होंने अपने तेजस्वी पौत्र अंशुमान को अपने पुत्रों तथा घोड़े का पता लगाने के लिये आदेश दिया। वीर अंशुमान शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर उसी मार्ग से पाताल की ओर चल पड़ा जिसे उसके चाचाओं ने बनाया था।
एक छोटे से गाँव में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे| उन दोनों के कोई संतान नहीं थी इस कारण वे बहुत दुखी रहते थे| वे हर रोज बच्चे के लिए भगवान से प्रार्थना करते, पूजा-अर्चना करते और मनौतियां मनाते रहते| कुछ समय बाद उनकी मनोकामना पूरी हो गई| एक दिन उनके घर में एक बच्चे ने जन्म लिया| पर वह बच्चा, एक सांप था|
एक बालक सिद्धार्थ प्रातःकाल घूमने के लिए बगीचे में गया| बगीचे में बहुत से पक्षी उछल-कूद कर रहे थे|
ऋषि विश्वामित्र ने इस प्रकार कथा सुनाना आरम्भ किया, “पर्वतराज हिमालय की अत्यंत रूपवती, लावण्यमयी एवं सर्वगुण सम्पन्न दो कन्याएँ थीं। सुमेरु पर्वत की पुत्री मैना इन कन्याओं की माता थीं। हिमालय की बड़ी पुत्री का नाम गंगा तथा छोटी पुत्री का नाम उमा था। गंगा अत्यन्त प्रभावशाली और असाधारण दैवी गुणों से सम्पन्न थी। वह किसी बन्धन को स्वीकार न कर मनमाने मार्गों का अनुसरण करती थी। उसकी इस असाधारण प्रतिभा से प्रभावित होकर देवता लोग विश्व के क्याण की दृष्टि से उसे हिमालय से माँग कर ले गये। पर्वतराज की दूसरी कन्या उमा बड़ी तपस्विनी थी। उसने कठोर एवं असाधारण तपस्या करके महादेव जी को वर के रूप में प्राप्त किया।”
एक वृक्ष पर बहुत से कबूतर रहते थे| एक दिन प्रातःकाल कबूतर भोजन की तलाश में उड़े| उड़ते-उड़ते उनकी दृष्टि एक जगह बिखरे हुए दानों पर पड़ी|
एक बार हस्तिनापुर के महाराज प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित हो कर देवी गंगा उनकी दाहिनी जाँघ पर आकर बैठ गईं। महाराज यह देख कर आश्चर्य में पड़ गये तब गंगा ने कहा, “हे राजन्! मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूँ* और आपसे विवाह करने की अभिलाषा ले कर आपके पास आई हूँ।” इस पर महाराज प्रतीप बोले, “गंगे! तुम मेरी दहिनी जाँघ पर बैठी हो। पत्नी को तो वामांगी होना चाहिये, दाहिनी जाँघ तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करता हूँ।” यह सुन कर गंगा वहाँ से चली गईं।
एक धोबी के पास एक बूढ़ा-सा मरियल गधा था| गधा रोज सवेरे मैले कपड़ो की गठरी लेकर घाट जाता और शाम को धुले कपड़ो को लादकर घर लाता था| रात होने पर उसे घुमने की छुट्टी मिल जाती थी| एक बार घुमते-फिरते उसकी भेंट एक गीदड़ से हुई| दोनों दोस्त बन गये| अब दोनों भोजन की तलाश में साथ-साथ घूमने लगे|
एक जंगल था| जंगल का राजा शेर एक दिन पेड़ की छाया में सो रहा था| एक छोटा चूहा अपने बिल से दौड़ कर आया और शेर की नाक पर उछल-कूद करने लगा| इससे शेर जाग गया|
एक बार हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत आखेट खेलने वन में गये। जिस वन में वे शिकार के लिये गये थे उसी वन में कण्व ऋषि का आश्रम था। कण्व ऋषि के दर्शन करने के लिये महाराज दुष्यंत उनके आश्रम पहुँच गये। पुकार लगाने पर एक अति लावण्यमयी कन्या ने आश्रम से निकल कर कहा, “हे राजन्! महर्षि तो तीर्थ यात्रा पर गये हैं, किन्तु आपका इस आश्रम में स्वागत है।”