आत्म निरीक्षण
जीवन में उन्नति के लिए जरुरी है कि प्रत्येक आदमी प्रतिदिन अपने जीवन का आत्म-निरिक्षण करे| वह कम-से-कम सोने से पहले अपने दिन-भर के कामों का लेखा-जोखा करे| वह देखे कि दिन-भर में मैंने कौन-सी भूलें की?
जीवन में उन्नति के लिए जरुरी है कि प्रत्येक आदमी प्रतिदिन अपने जीवन का आत्म-निरिक्षण करे| वह कम-से-कम सोने से पहले अपने दिन-भर के कामों का लेखा-जोखा करे| वह देखे कि दिन-भर में मैंने कौन-सी भूलें की?
एक ब्राह्मण को एक दिन दान में एक बकरी मिली| वह बकरी को कंधे पर रखकर घर की ओर चल पड़ा| रास्ते में तीन धूर्तो ने उस ब्राह्मण को बकरी ले जाते देखा तो उनके मूंह में पानी भर आया| उन्हें भूख लग रही थी|
एक बार की बात है, एक धनी पिता ने अपने नालायक बेटे से कहा- “आज कुछ अपनी मेहनत से कमाकर लाओ, नहीं तो शाम को खाना नहीं मिलेगा|”
एक बार एक सियार भोजन की तलाश में भटक रहा था| आज का दिन उसके लिए बहुत बुरा साबित हुआ था, क्यों की उसे खाने को कुछ भी नहीं मिला था|
प्राचीन समय की बात है| एक फकीर के पास एक कम्बल था| एक चोर ने फकीर का वह कम्बल चुरा लिया| फकीर इस चोरी से दुखी होकर पास के थाने में गया| वहाँ उसने थानेदार को चोरी की गई वस्तुओं की एक लंबी सूची लिखवा दी| रपट में उसने लिखाया- “उसकी रजाई, मसनद, छतरी, गद्दा, कोट, पाजमा और अनेक वस्तुएँ खो गई हैं|”
एक घने जंगल में एक झील थी| उसके किनारे चार मित्र रहते थे| उनमें से एक छोटा-सा भूरा चूहा था| उसकी लम्बी पूंछ और काली चमकीली आंखे थी| वह झील के किनारे एक बिल बना कर रहता था|
एक बार की घटना है| 30 मार्च, 1919 के दिन दिल्ली में एक अभूतपूर्व हड़ताल हुई| सब ट्रामगाडियाँ और टाँगें बंद थे| दोपहर के समय स्वामी श्रद्धानंद जी को सूचना मिली कि दिल्ली स्टेशन पर गोली चल गई है|
एक बहुत बड़े और घने पीपल के तले एक तीतर ने अपना घोंसला बनाया| उस पीपल के इर्द-गिर्द और भी अनेक छोटे-बड़े पशु-पक्षी रहते थे| उन सभी से तीतर की अच्छी मित्रता थी|
बात प्राचीन महाभारत काल की है। महाभारत के युद्ध में जो कुरुक्षेत्र के मैंदान में हुआ, जिसमें अठारह अक्षौहणी सेना मारी गई, इस युद्ध के समापन और सभी मृतकों को तिलांज्जलि देने के बाद पांडवों सहित श्री कृष्ण पितामह भीष्म से आशीर्वाद लेकर हस्तिनापुर को वापिस हुए तब श्रीकृष्ण को रोक कर पितामाह ने श्रीकृष्ण से पूछ ही लिया, “मधुसूदन, मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं सरसैया पर पड़ा हुआ हूँ?”
एक बार की बात है एक उत्साही युवक रामकृष्ण परमहंस की सेवा में गया| वह रामकृष्ण परमहंस के कदमों में झुक गया| उसने भक्तिभाव से परमहंस से प्रार्थना की, “महात्मन्! मुझे अपना चेला बना लो| मुझे गुरुमंत्र की दीक्षा दीजिए|”