लालची कुत्ता – शिक्षाप्रद कथा
किसी कुत्ते ने एक कसाई की दुकान से मांस का टुकड़ा चुराया और इधर-उधर भाग कर कोई ऐसा स्थान खोजने लगा जहां शान्ति से बैठ कर वह उस मांस के टुकड़े का मजा ले सके|
किसी कुत्ते ने एक कसाई की दुकान से मांस का टुकड़ा चुराया और इधर-उधर भाग कर कोई ऐसा स्थान खोजने लगा जहां शान्ति से बैठ कर वह उस मांस के टुकड़े का मजा ले सके|
एक बार की बात है कि एक भेड़िया और एक सिंह शिकार की तलाश में साथ-साथ घूम रहे थे| एक प्रकार से भेड़िया शेर का मंत्री था|
एक किसान ने जीवन भर घोर परिश्रम किया तथा अपार धन कमाया| उसके चार पुत्र थे, मगर चारों ही निकम्मे और कामचोर थे| किसान चाहता था कि उसके पुत्र भी उसके परिश्रमी जीवन का अनुसरण करें| मगर किसान के समझाने का उन पर कोई असर नहीं होता था|
एक समय की बात है| एक बारहसिंगा एक तालाब पर पानी पी रहा था| अभी बारहसिंगे ने एक-दो घूंट पानी ही पिया था कि उसकी दृष्टि तालाब के पानी में दिखाई देते अपने प्रतिबिम्ब पर पड़ी| अपने सुन्दर सींगों को देखकर वह प्रसन्न हो उठा-‘वाह! कितने सुन्दर हैं मेरे सींग!’
माया क्या है? भ्रम| जो दिख रहा है, वह सत्य लगता है, यह भ्रम है| शरीर ही सबकुछ है, भ्रम है| नष्ट हो जाने वाली वस्तुएं शाश्वत हैं, भ्रम है| मकान-जायदाद, मेरी-तेरी, भ्रम है| रिश्ते-नाते सत्य हैं, भ्रम है… यही माया है|
प्राचीन समय की बात है| राजकुमार भोज अबोध बालक ही थे कि उनके पिता स्वर्गवासी हो गए| भोज के पिता ने शरीर छोड़ते हुए अपने छोटे भाई मुंज को पास बुलाकर कहा- “अभी यह राज्य तुम संभालो| जब भोज बड़ा और समझदार हो जाए तो उसे राजपाट सौंप देना|”
महाभारत की कहानी है| एक बार गुरु द्रोणाचार्य ने अपने कौरव-पांडव शिष्यों की परीक्षा लेनी चाही|
यह घटना आजादी के पूर्व की है| मुंशी प्रेमचन्द हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कथाकार एवं उपन्यास-लेखक ने जीवन की शुरुआत अध्यापन कार्य से की थी, बाद में वे स्कूलों के इंस्पेक्टर बन गए थे| यह घटना उस समय की है, जब वह एक सामान्य स्कूल में एक सामान्य शिक्षक थे| एक बार इंस्पेक्टर विधालय के निरक्षण के लिए पधारे| प्रेमचन्द जी ने पूरी विनम्रता और कायदे से उन्हें स्कूल दिखलाया|
एक बार की बात है| वीतराग स्वामी सर्वदानन्द जी बिहार के छपरा स्थान पर पहुँचे| उन्होंने देखा कि एक मंदिर के पुजारी बड़े प्रेम से हवन करा रहा था|
एक दिन एक महात्मा मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य (या विष्णुगुप्त) के घर पधारे| भोजन की बेला थी| अतिथि से आचार्य ने निवेदन किया कि वह उनके साथ भोजन करें|