वंदे मातरम्’ की अमर कहानी
स्वतंत्रता का मंत्र, राष्ट्रगीत बना
अकबर बादशाह अपने घोड़े पर सवार होकर बाग की सैर कर रहे थे, बीरबल भी उनके साथ था| बाग में हरे-भरे पेड़ थे और हरी घास की ही चादर-सी बिछी थी|
एक राजा था| उसका पुत्र बेहद आवारा किस्म का था| राजा अपने पुत्र की आवारागर्दी से बहुत परेशान था| उसने कई बार अपने पुत्र को समझाया कि वह इस राज्य का होने वाला राजा है और अगर उसकी ऐसी ही हरकतें रही तो प्रजा उसे नकार देगी| लेकिन उस पर अपने पिता की सीख का कोई असर नही पड़ा|
ब्रह्मा हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। वे हिन्दुओं के तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। सृष्टि का रचयिता से आशय सिर्फ जीवों की सृष्टि से है। पुराणों ने इनकी कहानी को मिथकरूप में लिखा।
प्राचीन समय की बात है| दो साधु थे| किसी भक्त ने दोनों को बहुमूल्य कम्बल तोहफे में दिए| पूरे-दिन यात्रा करने के बाद दोनों साधु रात्रि के विश्राम के लिए एक धर्मशाला में रुके|
एक पंडित बादशाह अकबर के दरबार में आया और चुनौतीपूर्ण स्वर में दरबारियों से बोला – “मैं आप लोगों को चुनौती देता हूं कि मेरी मातृभाषा के बारे में बताएं में बताएं या हार स्वीकार करें|”
शिवाजी मराठा एक सर्वश्रेष्ट योद्धा थे| उन्हे एक महान योद्धा , देशभगत, कुशलप्रशासक एवं राष्ट्र निर्माता के रूप मै याद किया जाता है| वास्तव मे इनका व्यक्तितत्व बड़ा धनी अथवा बहुमुखी था| वे एक आदर्श देश भगत के साथ साथ मात्र भगत भी थे| वास्तव मै वे एक आदर्श पुत्र थे और अपनी माता जीजा भाई के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे| उनका व्यक्तित्व इतना धनी था की उनसे मिलने वाला हर कोइ उनसे प्रभावित हुए बगैर नहीं रहता था| वास्तव मे शोर्ये , साहस तथा तीव्र बुदी के धनी शिवाजी का जनम १९ फरवरी , १६३० को शिवनेरी दुर्ग मे हुआ था| इनकी जन्मतिथि के बारे मे के मतभेद प्रचलित हैं | कुछ विद्वानों के अनुसार इनकी जन्मतिथि २० अप्रैल १६२७ है|
एक किसान को अपने खेत में खुदाई के दौरान एक बहुत बड़ा देग (बड़ा पतीला) मिला| वह देग इतना बड़ा था कि उसमें एक साथ पाँच सौ लोगों के लिए चावल पकाए जा सकते थे| किसान के लिए वह देग बेकार ही थी| उसने वह देग एक तरफ़ रख दी और पुनः खुदाई में जुट गया|
एक बार राजा अजातशत्रु एक साथ कई मुसीबतों से घिर गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इन आपदाओं को कैसे दूर किया जाए। वह दिन-रात इसी चिंता में डूबे रहते। तभी एक दिन उनकी मुलाकात एक वाममार्गी तांत्रिक से हुई। उन्होंने उस तांत्रिक को अपनी आपदाओं के बारे में बताया।
एक बार अकबर बादशाह युद्ध के बाद दिल्ली की तरफ वापस आ रहे थे| रास्ते में उन्हें इलाहाबाद में गंगा किनारे पर पड़ाव डालना पड़ा|