मनुष्य या पशु? – शिक्षाप्रद कथा
एक सच्ची घटना है| नाम मैं नहीं बताऊँगा| बहुत-से लड़के पाठशाला से निकले| पढ़ाई के बीच में दोपहर की छुट्टी हो गयी थी|
एक सच्ची घटना है| नाम मैं नहीं बताऊँगा| बहुत-से लड़के पाठशाला से निकले| पढ़ाई के बीच में दोपहर की छुट्टी हो गयी थी|
एक डॉक्टर साहब हैं| खूब बड़े नगर में रहते हैं| उनके यहाँ रोगियों की बड़ी भीड़ रहती है| घर बुलाने पर उनको फीस के बहुत रुपये देने पड़ते हैं|
‘यह तो बड़ा भयानक नरक है|’ महाराज युधिष्ठिर को धर्मराज के दूत नरक दिखला रहे थे|
एक राजा के चार लड़के थे| राजा ने उनको बुलाकर बताया कि ‘जो सबसे बड़े धर्मात्मा को ढूँढ़ लायेगा, वही राज्य का अधिकार पायेगा|’
एक डाकू था| डाके डालता, लोगों को मारता और उनके रुपये, बर्तन, कपड़े, गहने लेकर चम्पत हो जाता| पता नहीं, कितने लोगों को उसने मारा| पता नहीं कितने पाप किये|
जापान में एक साधारण चरवाहा था| उसका नाम था मूसाई| एक दिन गायें चरा रहा था| एक बगुला उड़ता आया और उसके पैरों के पास गिर पड़ा| मूसाई ने बगुले को उठा लिया|
एक बूढ़े आदमी थे| गंगा-किनारे रहते थे| उन्होंने एक झोपड़ी बना ली थी| झोपड़ी में एक तख्ता था, जल से भरा मिट्टी का एक घड़ा रहता था और उन्होंने एक कछुआ पाल रखा था|
एक मन्दिर था आसाम में| खूब बड़ा मन्दिर था| उसमें हजारों यात्री दर्शन करने आते थे| सहसा उसका प्रबन्धक प्रधान पुजारी मर गया|
एक बाबा जी एक दिन अपने आश्रम से चले गंगा जी नहाने| बाबा जी धोखे से आधी रात को ही निकल पड़े थे| रास्ते में उनको चोरों का एक दल मिला|
एक सियार था| एक दिन उसे जंगल में कुछ खाने को न मिला| बड़ी भूख लगी थी| अन्त में वह बस्ती में कुछ खाने की खोज में आया|