अर्जुन का अहंकार
एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनकी इस भावना को श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए।
एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनकी इस भावना को श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए।
प्राचीन काल में मालव देश में एक ब्राह्मण रहता था, जो बहुत ही धर्मनिष्ठ एवं भद्र पुरुष था| उसका नाम था – यज्ञदत्त! यज्ञदत्त के दो बेटे भी थे, जिनके नाम कालेनेमी एवं विगतभय थे|
एक व्यक्ति ने कबूतर और गाय पाल रखे थे| एक दिन कबूतर गाय के पास दाना से अन्न चुगने लगा| गाय बोली, “तुम मार भोजन नहीं खा सकते| जाओ तथा कुछ और खोजो|” कबूतर को आपत्ति अच्छी नहीं लगी|
एक धनी किसान था। उसे विरासत में खूब संपत्ति मिली थी। ज्यादा धन-संपदा ने उसे आलसी बना दिया। वह सारा दिन खाली बैठा हुक्का गुड़गुड़ाता रहता था।
ताम्रलिप्ति नगर में धनदत्त नामक एक धनवान वैश्य रहता था| अत्यंत धनी होने पर भी वह संतानहीन था| पुत्र प्राप्त करने के लिए उसने अनेक उपाय किए| अंत में अनेक विद्वान ब्राह्मणों को बुलाकर उसने इस विषय में कुछ करने के लिए उनसे आग्रह किया| ब्राह्मणों ने कहा कि ऐसा करना कोई कठिन कार्य नहीं है| इसके बाद वे एक कथा सुनाने लगे –
अपने प्रिय नौकर को स्टेशन पर देखकर मालिक प्रसन्न हो गया| नौकर उन्हें लेने आया था|
गौतम बुद्ध के एक शिष्य पूर्ण ने सीमाप्रांत में धर्म प्रचार करने की अनुमति मांगी। बुद्ध ने कहा, ‘उस प्रांत के लोग अत्यंत कठोर तथा क्रूर हैं। वे तुम्हें गाली देंगे।’ पूर्ण ने कहा, ‘मैं समझूंगा वे भले लोग हैं कि वे मुझे थप्पड़-घूंसे नहीं मारते।’ बुद्ध बोले, ‘यदि वे तुम्हें थप्पड़-घूंसे मारने लगे तो…।’ पूर्ण ने कहा, ‘वे शस्त्र-प्रहार नहीं करेंगे इस कारण मैं उन्हें दयालु मानूंगा।’
यह कथा उस समय की है, जब वर्धमान नगर में राजा वीरभुज का शासन था| राजा वीरभुज को संसार के सभी भौतिक सुख उपलब्ध थे, किंतु संतान न होने का दुख उसे विदग्ध किए रहता था| संतान की लालसा में उसने एक-एक करके सौ विवाह किए थे, किंतु उसकी कोई भी रानी अपनी कोख से राज्य के उत्तराधिकारी को जन्म न दे सकी|
सेन नामक एक ठग ने अपने मित्र दीना के साथ मिलकर लोगों को मिलकर लोगों को ठगने की योजना बनायी| वह नकली महात्मा बन गया| दीना को उसके बारे में झूठा प्रचार करना था|
एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। उसके गले में एक हीरों का हार था, जिसे उतार कर वहीं आले पर रख दिया और बाल संवारने लगी।