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श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-8 (बुध-बृहस्पतिवार की व्रत कथा)

श्रावण मास माहात्म्य

शिव बोले – हे सनत्कुमार! अब मैं तुम्हें बुध तथा बृहस्पतिवार व्रत के संदर्भ में बतलाता हूँ| इस व्रत को नियम, भक्ति और श्रद्धा से पूरा करने पर सर्वोत्तम सिद्धि मिलती है| स्वयं ब्रह्माजी ने चन्द्रमा को ब्राह्मणों के सिंहासन पर आसीन किया था| किसी समय चन्द्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा के रूप-लावण्य पर आसक्त हो काम के वशीभूत हो गये| चन्द्र ने अपने बल से गुरुपत्नी का भोग किया| कालांतर में तारा ने एक पुत्र को जन्म दिया| उसका नाम बुध था| वह बलशाली, ओजस्वी और सुन्दर था| बृहस्पति ने जब अपनी भार्या को चन्द्रमा के पास देखा| उन्होंने उससे अपने लौटाने को कहा परन्तु चन्द्रमा ने तारा को वापस नहीं किया|

इस पर बृहस्पति ने इन्द्रसभा में जाकर सब कुछ इन्द्रदेव को बतला दिया| इन्द्र ने चन्द्रमा से कहा – हे चन्द्रदेव! तुम्हें गुरूपत्नी वापस कर देनी चाहिए| परस्त्री से रमण करना महापाप है| अतः तुम गुरुपत्नी लौटा दो|

 

इस पर चन्द्रमा बोला – हे देवराज! आपकी आज्ञानुसार मैं गुरूपत्नी तो वापस कर दूंगा| परन्तु मैं अपना पुत्र कभी न दूंगा| क्योंकि यह मेरे संयोग से उत्पन्न हुआ है| देवताओं ने विचार किया कि यह पुत्र किसका है, यह तो गुरूपत्नी तारा ही बतला सकती है| अतः इन्द्र ने तारा से पूछा-हे शुभांगी! यह तुम ही बतला सकती हो कि यह पुत्र बृहस्पति देव का है अथवा चन्द्रदेव का| तुम ठीक-ठीक हमसे कहो तब देवराज का अभिनन्दन कर तारा ने कहा – हे देवराज! आप इस बच्चे को बृहस्पति अथवा चन्द्रमा किसी को भी दे दें (क्योंकि यह चन्द्रमा का औरज और बृहस्पति का क्षेत्रज पुत्र है) इस पर देवराज ने उस बालक (बुध) को चन्द्रमा को दे दिया|

उन्होंने उन दोनों से कहा – हे चन्द्र एवं बृहस्पति! तुम दोनों का यह पुत्र ‘बुध’ पृथ्वी पर ग्रह बनेगा| इन्द्रदेव ने बृहस्पति को वरदान देते हुए कहा कि, पृथ्वी पर जो बुध और बृहस्पति का एक साथ पूजन करेगा वह समस्त ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त करेगा| उसे असीम धन की प्राप्ति होगी| यह जो मैंने कहा है वह एक संशयरहित तथ्य है| जो लोग महादेव के सबसे प्रिय मास श्रावण में ‘बुध और बृहस्पति’ का मिलकर पूजन करेंगे उन्हें अमर खजाने की प्राप्ति होगी, जो सदैव ही बढ़ता रहेगा, कभी भी समाप्त नहीं होगा| वह लम्बी आयु वाला होगा|

दोनों मूर्तियों के लिए नैवेद्य रूप में दही और भात देना चाहिए| झूले पर मूर्तियों को रखकर पूजन करने वाला ऐसा पुत्र पाता है जो सम्पूर्ण गुणों वाला और दीर्घायु होता है| पित्तगृह में मूर्तियों को पूजने वालों का पित्त सदैव ही बढ़ता रहता है| रसोईघर में मूर्तियों को पूजन वाले के पाक भण्डार में कभी कमी नहीं आती है| शयन करने वाले कमरे में मूर्तियों का पूजन करने वाले का कभी भी पत्नी से वियोग नहीं होता है| धान्यागार (अन्न-भण्डार) में पूजन करने पर कभी भी अन्न-भण्डार में कमी नहीं आती है| उद्यापन करने से पहले सात वर्ष तक व्रत करने चाहिए| व्रत के प्रथम दिवस अधिवासन के पश्चात् रात्रि-जागरण करें| सोने की मूर्ति का पहले शास्त्रानुसार पूजन करें तब सोलह उपचार से पूजन करके हवन करना चाहिए| अग्नि को समर्पित करने के लिए तिल-घी तथा खीर दें| हवन के लिए चिचिड़ा तथा पीपल समिधा लें| पहले मामा तथा भानजे को भोजन देकर तब ब्राह्मणों को भोजन कराएं| अन्त में स्वयं भी सपत्नीक भोजन ग्रहण करें|

इस तरह सात साल तक व्रत करने वाला उपवासी अपनी समस्त मनोकांक्षाओं को पूरा करने में सफल होता है| विद्या तथा बुद्धि चाहने वाले को सरस्वती का सम्पूर्ण ज्ञान मिलता है| उसे वेद तथा ग्रन्थों की सम्पूर्ण जानकारी स्वतः ही हो जाती है| वह वेद-शास्त्रों के रहस्यमय अर्थ भी जान जाता है| उसे बुधदेव से ज्ञान और वृहस्पति से गुरुता मिलती है|

शिव से सनत्कुमार ने कहा – हे देवाधिदेव! आपने जो मामा- भानजे को भोजन कराने के लिए कहा है, उसकी क्या आवश्यकता है, वह मुझे बतलायें| मैं वह सुनना चाहता हूँ| इस पर शिव ने एक कथा सुनाई, वह इस प्रकार है –

पूर्व काल में एक मामा और भानजा साथ रहते थे| दोनों अति दीन-हीन थे| एक दिन भोजन के लिए भ्रमण करते हुए वे दोनों एक अति सुन्दर नगरी में पहुँचे| वहाँ उन्होंने शिव के प्रिय मास श्रावण मास में लोगों को बुध व बृहस्पतिवार को छोड़कर प्रत्येक वार को व्रत करते हुए जब उन्होंने सोचा कि वे दोनों बुध और वृहस्पतिवार का व्रत रखेंगे| यह एक अनुचिछ्ष्ट व्रत है| लेकिन व्रत-विधि न मालूम होने से वे दोनों संशय में पड़ गए|

सौभाग्यवश उसी रात्रि को स्वप्न में उनको किसी दैव-शक्ति ने व्रत की सम्पूर्ण विधि बतला दी| विधि के अनुसार उन दोनों ने वह व्रत पूरा किया तो अल्प समय में ही उन्हें अपार धन-सम्पदा तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति हो गई| वे अब कुबेर के ही समान धनवान हो गये| उन्होंने सात वर्ष तक यह व्रत किया तो पुत्र-पौत्रादि के स्वामी बन गये| तब बुध और वृहस्पति ने मामा-भानजे को दर्शन देकर कृतार्थ किया और वरदान दिया – आप दोनों मामा-भानजेने विधि एवं नियमानुसार यह व्रत पूरा किया है| अतः आज के बाद इस भूमंडल पर जो भी प्राणी यह व्रत करके मामा-भानजे को भोजन करायेगा, वह समस्त ऋद्धि-सिद्धियों को प्राप्त कर वैभव संपन्न होगा तथा अंत में उसे शिवधाम मिलेगा|

फलः- आठवें अध्याय के पाठ-श्रवण से मनोरथ की पूर्ति व आयु की वृद्धि होती है|