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श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-6 (सोमवार की व्रत कथा)

श्रावण मास माहात्म्य

सनत्कुमार बोले-हे भगवान्! आपने अति उत्तम माहात्म्य सुनाया है| अब आप मुझे श्रावण मास के सोमवार की व्रत कथा भी सुनायें|

शिव बोले – हे सनत्कुमार! अब मैं तुम्हें पार्वती सहित सोमवार व्रत की कथा सुनाता हूँ| चन्द्रमा का दूसरा नाम सोम है| सोम ब्राह्मणों का देव है| सोमलता को यज्ञ साधन कहते हैं| सोम मेरा ही प्रतिरूप है| इसलिए यह सोमवार कहा जाता है| चूँकि यह उपासक को उत्तम फल प्रदान करता है| अतः यह सर्वश्रेष्ठ कहलाता है|

हे सनत्कुमार! अब मैं इसकी विधि बतलाता हूँ| ध्यानपूर्वक कथा का श्रवण करो| वैसे तो पूरे वर्ष के सोमवार-व्रत उत्तम होते हैं| परन्तु इस मास के चार या पाँच सोमवार व्रत अवश्य ही करने चाहिए| इसका पुण्य-फल बारह मास के उपवासों से अधिक फलदप्रद है| इस मास में एक सोमवार-व्रत का फल वर्षभर के सभी उपवासों के फल के बराबर होता है| अतः भक्त को श्रावण मास के शुक्ल-पक्ष के सोम-व्रतों का संकल्प करके इस मास में जितने भी सोमवार आयें, उन सोमवारों को व्रत-संकल्प करके रात्रि, को शिव-पूजन करें| संध्या काल में सोलह प्रकार से शिव पूजा करके रात्रि को कथा श्रवण करें| अब मैं भगवान श्री सदाशिव की कथा कहता हूँ| सुनो –

श्रावण मास के पहले सोमवार को व्रत को ग्रहण करके नित्यकर्म-स्नान ध्यान से निवृत होकर अपने आपको हर प्रकार से पवित्र करें| तत्पश्चात सफेद वस्त्र पहनें| मन से काम, क्रोध, मोह, अहंकार, द्वेष आदि को निकालकर मालती, मल्लिका आदि अनेक प्रकार के फूलों तथा निर्दिष्ट उपचारों से मन्त्र ‘ॐ नमः शिवाय’ अथवा ‘त्र्यम्बक मन्त्र’ से पूजा करें| करबद्ध होकर उच्चारण करें – ‘हे सर्वशक्तिमान, महादेव भगवान्! तुम भवनाशक हो| हे उग्र, उग्रनाथ, भवशशिमौलि! में करबद्ध हो आपका ध्यान करता हूँ| इस प्रकार के मनोहारी वचनों से देवाधिदेव महादेव का स्मरण करें| अपनी सामर्थ्यानुसार जो भी यह व्रत करता है उससे प्राप्त पुण्यलाभ इस प्रकार है –

जो प्राणी सोमवार को महादेव और पार्वती का पूजन करने वाले भवबन्धन से मुक्त हो शिवधाम पाते हैं| इस मास में होने वाले नक्त-व्रत का वर्णन मैं संक्षिप्त रूप में करूंगा| वे पाप जो अनंतकाल में भी नहीं करते, वे भी नक्त भोजन के द्वारा नष्ट हो जाते हैं| इस अति उत्तम व्रत को करना चाहिए| इस व्रत को करने से पुत्रेच्छु को पुत्र की प्राप्ति होती है| धन चाहते वाले को धन मिलता है| वह इहलोक में समस्त सुख-सुविधाओं का उपभोग करता हुआ मरणोपरान्त रुद्रलोक (मोक्ष) पाता है और वहाँ भी वह देवों द्वारा वन्दनीय होता है|
इस लोक को अस्सारमय और चलायमान जानकर बुद्धिमान प्राणी व्रत और उद्यापन द्वारा अपना जीवन सफल बनाता है और सद्गति पाता है| मोह-माया को त्याग कर प्राणी को अपनी सामर्थ्य के अनुसार सोने की बनी शिव-पार्वती की बैल पर सवार प्रतिमा बनवानी चाहिए| एक अति भव्य और सुन्दर लिंगतोभद्र मन्डल पर घट बनवाकर उस पर तांबे अथवा बांस का पात्र रखकर सबसे ऊपर शिव-पार्वती की मूर्ति रखें| तत्पश्चात शास्त्रानुसार शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करके फूलों का मंडल बनाकर उस पर एक अत्यन्त ही सुन्दर चंदवा बाँध दें| रात्रि-जागरण करते हुए गीत-नृत्य का आयोजन करें| अग्नि स्थापित करवाकर सर्वभवनाश आदि 11 नामों द्वारा हवन करवाना चाहिए|

भक्त ब्रीहितल आदि की मदद से आरयाय तथा मन्त्र द्वारा बिल्वपत्र का अथवा षडाक्षर मंत्र से हवन करें| पूर्णाहुति पूरी करके स्वीकृत तथा अन्य आहुतियाँ दें| आचार्य की भी पूजा करके उसे दक्षिणा के साथ गोदान करना चाहिए| ग्यारह विद्वान ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें भी 1 घड़ों के साथ बाँस के पात्र दानस्वरूप देने चाहिए| पूजन के पश्चात् देवी-देवता पर चढ़ी सामग्री आचार्य को दानस्वरूप दें| पूजा करते हुए बोले-‘मेरा व्रत सफल हो और मेरे व्रत से शिव प्रसन्न हों|’

तदोपरांत हर्षित होकर अपने परिवारजनों के साथ स्वयं भी भोजन ग्रहण करें| इस बतलाये गये उपाय से व्रत करनेवाला मनचाही वस्तु पाता है और उसकी समस्त इच्छायें पूर्ण होती हैं| वह सुख भोग कर मरणोपरांत विमान में सवार हो शिवलोक जाता है| वह वहाँ भी पूजनीय होता है| सर्वप्रथम यह सोमवार व्रत भगवान कृष्ण ने स्वयं किया था| उसके बाद उनके अनुयायियों, राजाओं और धर्मपुरुषों ने यह व्रत शुरू किया| इस व्रत को केवल श्रवण करनेवाला भी पुण्य-फल पाता है|

फल:- इस छठे अध्याय के पाठ-श्रवण से शिव सान्निध्य तथा पुण्यफल की प्राप्ति होती है|