श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-18 (आशा दशमी व्रत शुक्ला दशमी का माहात्म्य)
भगवान शिव बोले – हे सनत्कुमार श्रावण मास के शुक्ल-पक्ष की नवमी तिथि को यह व्रत शुरू करके अगले वर्ष के श्रावण महीने में अर्थात् बारह मास तक व्रत करके यह व्रत दशमी के दिन उद्यापन करके समाप्त करना चाहिए|
इस व्रत को नरेश तथा नरेश-पुत्र राज्य प्राप्त करने की अभिलाषा से, वैश्य व्यापार हेतु, गर्भवती स्त्री पुत्र हेतु, अन्य जनवर्ग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति हेतु, ब्राह्मण स्नान हेतु, रोगी रोगमुक्त होने के लिए, विरहणी पति-दर्शन हेतु इस व्रत का करती है, यह व्रत आशा दशमी व्रत कहलाता है|
सब प्रकार के दुःखों को दूर करने के लिए श्रावण मास में शुक्ल-पक्ष की दसवीं को रात्रि को ही स्नान व वन्दना कर व्रत शुरू कर दें| रात्रि को ही सब दिशाओं में फूल, पल्लव, चन्दन या जौ के आटे द्वारा अपने घर के चौक में अंकन करवा दें| उसमें वाहन के साथ स्त्री-चिह्न द्वारा चिह्नित कर घी से बना हुआ नैवेद्य दें| दीपक भी अलग-अलग दें| ऋतु काल में होने वाले फल भेंट कर अपना उद्देश्य बोलों|
मेरी उम्मीद शोभिनी हो एवं मनोच्छायें हमेशा पूरी हों| इस प्रकार प्रत्येक मास लगातार व्रत करें| शिव बोले-हे वत्स! एक साल तक उद्यापन करके अपने देश-दिशाओं की स्वर्ण की मूर्ति बनवाकर तथा अपने रिश्तेदारों के साथ स्नान से निवृत हो और सुन्दर वस्त्र धारण कर घर के चौक में ध्यानस्थ हो आह्वान, अर्चना तथा स्थापन करें| दिशा-मन्त्र निम्नलिखित हैं –
‘ऐन्द्री! दिशादेव, सुर तथा असुर सबको नमस्कार है| संसारपति इन्द्र भी आपके के अधीन हैं| इस प्रकार आपको बारम्बार प्रणाम है| हे आशे! अग्निदेव की उपस्थिति में आप आग्नेयी जानी जाती हैं| आप तेजस्वरूप पराशक्ति हैं| आप वरदायक हैं| हे याम्ये! आपके आदेशानुसार ही चित्रगुप्त संसारवासियों का दण्ड निर्धारित करते हैं| इसलिए आपको संयमनी जाना जाता है|
आप शुभ फलदायक हो| हे आशे! विकराल रूप मृत्युदेव सदैव हाथ में तलवार लिये आपके वाम अंग में उद्यत रहते हैं| इस प्रकार आप निऋतिरूपा हैं| हे नैऋते! आप मेरा मनोरथ सिद्ध करें| हे वास्णी! भुवनाधार और जल-जन्तु के स्वामी (देव/प्रभु) आपमें रहते हैं| हे वारुणी! मेरे कार्य और धर्मकार्य हेतु सदैव तैयार रहें| हे वारूणी! मेरे कार्य और धर्मकार्य हेतु सदैव तेयार रहें| हे वायव्ये! आप विश्व के आदिकरण वायुदेव से अधिष्ठित हैं| मेरे गृह में शान्ति बनाये रखें| हे कौजेरि! आपकी दिशा में कुबेर का वास है| उत्तर दिशा आपकी बतलाई गई है| मेरी इच्छाओं को जल्दी पूरा करें| आप प्रभु पद पर शोभायमान हों| हे देवी! हे शुभे! मेरी वांछनीय वस्तुओं को प्रदान करें| आपको बारम्बार प्रणाम है| वन्दना है| कुल विश्व पर आधिपत्य करने वाले, सदैव ही जनकल्याणक, जनकनंदन, सनातन और अनेक मुनियों के साथ रहने वाली! आप सदैव ही मेरी रक्षा करें| मैंने सब नक्षत्रों, तारगण, ग्रहों, माता, विनायक, भूत-प्रेत आदि की पूजा की है| श्रद्धा तथा भक्ति से मैंने दिग्देवों की पूजा की है| सब देव मेरे अनुकूल हों|
साँप और नेवले से नीचे के लोक में आप सेवित हैं| आप मुझ पर नागनाओं के साथ हर्षित हों| ये सब मन्त्र उच्चारित कर फूल, धूप आदि से पूजा करके आभूषण, वस्त्र और फल दान में दें| गायन और वादन की मधुर लहरी से, वारांगनाओं के नाच-गान से, रात्रि जागरण के साथ समाप्ति करें| प्रातः फिर से मूर्ति की पूजा कर उसे ब्राह्मणों को दक्षिणास्वरूप दे दें| इस विधि से पूजा एवं क्षमापन के बाद नमस्कार करें| तब अपने कुटुम्बियों, संबंधियों और मित्रों के साथ भोजन ग्रहण करें|
हे सनत्कुमार! जो प्राणीजन इस तरह से व्रत सम्पन्न करते हैं उनकी सारी मनोकामनायें पूरी हो जाती हैं| यह व्रत विशेष तौर पर महिलाओं के लिए है| क्योंकि पुरुषों में नारियों के लिये विशेष श्रद्धा होती है| हे मुनिश्रेष्ठ! यह व्रत धन, यश, कीर्ति तथा आयु सबकी वृद्धि करता है| अतः हे पुत्र! मैंने तुम्हें इस व्रत के बारे में विस्तार से बतलाया है| त्रिलोक में इसके समान अन्य उत्तम व्रत नहीं है| दशमी को सब दिशाओं की अर्चना करने वाले की इच्छाओं को दिशाओं के देव फलीभूत करते हैं| हे पुत्र सनत्कुमार! यह व्रत मोक्ष का फलदायक है|