श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-15 (सूपोदन व्रत)
सनत्कुमार बोले-हे महाप्रभु! मैं आपके श्रीमुख से नागपंचमी व्रत की कथा सुन चुका हूँ| हे देवाधिदेव! अब आपके श्रीमुख से षष्ठी व्रत के विषय में जानना चाहता हूँ| यह कौन सा व्रत है और यह कैसे किया जाता है?
शिव बोले-हे सनत्कुमार! श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अति उत्तम महामृत्यु विनाशक जो व्रत किया जाता है वह ‘सूपोदन व्रत’ कहलाता है| शिव-मन्दिर में अथवा घर में ही महादेव की पूजा करके दाल-आटे-भात का नैवेद्य जिसमें नमक और आम का साग हो रखना चाहिए| ब्राह्मणों को नैवेद्य पदार्थों का ही बायन दें| विधि अनुसार यह व्रत करने वाला प्राणी पुण्य का भागी होता है| इसकी एक कथा इस प्रकार है-
पूर्व काल में रोहित नामक एक नरेश हुए| उनके कोई सन्तान न थी| पुत्र-प्राप्ति के लिए उन्होंने भीषण तप किया तो स्वयं ब्रह्माजी अवतरित हुए| वे नरेश से बोले-हे नरेश! तेरी किस्मत में| तो पुत्र है ही नहीं| राजा ने पुन: व्रत किया तो ब्रह्माजी फिर आये और बोले-हे राजन्! तुझे एक अल्पायु पुत्र ही दे सकता है| राजा ने सोचा कि बन्ध्यापन तो दूर होगा और पुत्र न होने से मिलने वाला अपयश भी हट जायेगा|
ब्रह्माजी के वरदान स्वरूप राजा के यहाँ पुत्र उत्पन्न हुआ| नरेश ने जातकर्म आदि अन्य अनुष्ठान हर्षित हो मनाये| राजा और रानी ने अपने पुत्र का नाम शिवदत्त रखा| थोड़ा बड़ा होने पर उसका उपनयन संस्कार भी कराया| मृत्यु के भय से राजा ने उसका विवाह नहीं किया| सोलह वर्ष की आयु में उस ब्रह्मचारी बालक का देहान्त हो गया| इससे राजा रानी अति चिन्तित रहने लगे| क्योंकि ऐसा समझा जाता है कि जिस वंश में ब्रह्मचारी बालक की मृत्यु हो जाती है, उस वंश का समूल विनाश हो जाता है|
सनत्कुमार बोले – हे प्रभु! हे जगतपति! मृत्यु के भय से बचने का कोई उपाय है तो मुझे बतलायें|
भगवान शिव ने कहा – ब्रह्मचारी हो तो अर्क विधि से संयोग कराकर ब्रह्मचारी तथा पेड़ को मिलाकर नाम तथा गोत्र बोलें| तब यह बोलना उचित है – ‘मैं मरे हुए ब्रह्मचारी की आत्मशांति के हितार्थ नैसर्गिक व्रत करता हूँ| प्रथम तो स्वर्ण से आभ्युदयिक कर अग्नि-स्थान एवं आधारावाज्य संज्ञक तथा अन्य आहुतियाँ दें| हवन के पश्चात व्रत के अनुष्ठान हितार्थ फल पाने के लिए व्रत धारक अग्नि एवं विश्वपति का घी से हवन करें| स्विष्टकृत हवन के पश्चात होम करना चाहिए| हवन के पश्चात यह बोलें-मैं अर्क शादी करूंगा| स्वर्ण द्वारा आभ्युदयिक करके पीपल की टहनी और शव को हल्दी तथा तेल से लेप कर पीले सूत से लपेटें| शव को दो पीले कपड़ों से ढक दें| अग्नि जलाकर विवाह – पद्धति से आधारान्त हवन करने के बाद अग्नि, बृहस्पति, काम की चार व्याह्तियों से हवन करके स्विष्टकृत संज्ञक होम करके उसके बाद कार्य को पूरा कर दें|
नियमानुसार पीपल की शाखा और मृतक शव का दाह कर दें| मरा न हो परन्तु मरणासन्न हो तो यह व्रत 6 साल तक करें| 30 ब्रह्मचारियों को नई कौपीन तथा प्रत्येक को एक-एक हस्त लम्बा या कर्णमात्र का कृष्णाजिन दान करें| उन्हें खड़ाऊं, छाता, गोपीचन्दन, मणि, प्रवाल माला तथा आभूषण आदि भी प्रदान करें| इस क्रिया के करने से कोई बाधा नहीं आती है|
शिव बोले-हे पुत्र! तब नरेश ने इस विधि को ब्राह्मण से सुनकर सोचा कि यह विशेष अर्क विवाह मुझे बिलकुल भी नहीं भय है| विवाह का प्रधान होना ही ठीक होता है| मैं तो नरेश हूँ, परन्तु इसे कोई अपनी पुत्री देगा तो मैं उसे अनंत रत्न व आभूषण दूंगा|
उसी नगरी में एक ब्राह्मण का निवास था| उसकी दूसरी पत्नी अत्यन्त ही कुटिल और चालाक थी| उसकी प्रथम पत्नी का देहान्त हो गया था| उसने लालच में आकर राजा को अपनी मरी हुई सौत की कन्या जो कल 10 वर्ष की ही थी, शादी के लिए दे दी| राजा ने बदले में उसे एक लाख रुपया दिया| राजा के कर्मचारी उस लड़की को श्मशान भूमि में ले गये जहाँ पर राजपुत्र का शव रखा था| वहाँ पर मृत राजकुमार से उसका विवाह कर दिया गया| तब उसे राजा के लड़के की देह के साथ जलाने की तैयारी होने लगी|
इस पर वह लड़की उन कर्मचारियों से बोली कि आप यह क्या कर रहे हैं? कर्मचारी बोले कि हे सुन्दरी! तेरा पीटीआई तो मर गया है| अतः हम तुम्हें इसके साथ जला रहे हैं| वह रोने लगी और बोली कि आप मेरे पति को न जलायें| मैं इनके साथ यहीं वन में रहूंगी| आप लोग यहाँ से चले जायें| मेरे पति अभी सो रहे हैं| जब से उठेंगे तो मैं उनके साथ आऊंगी| लड़की की वाणी सुन राजा और अन्य कर्मचारीगण वहाँ से चले गये| नगर के वृद्ध एवं बुद्धिमान लोगों ने सोचा अब तो नारायण ही इस सौत-पुत्री की रक्षा करेंगे| सौतेली माँ ने तो इस कन्या को बेचा है| जब सब लोग चले गये तो वह बालिका शव के पास बैठकर रुदन करने लगी और शिव-पार्वती को पुकारने लगी| भगवान शिव उस बालिका की करुण वाणी सुन पार्वती सहित नन्दी पर सवार हो उस वन में वहां पहुंच गये जहाँ बालिका रुदन कर रही थी|
बालिका ने जब शिव-पार्वती को देखा तो वह उठ खड़ी हुई| उसने सोचा अब मेरे पीटीआई जी उठेंगे| उसने प्रभु से कहा-क्या मेरे पति जी उठेंगे? उसकी वाणी से आर्द्र हो उठे प्रभु ने कहा – हे बालिके! तेरी माँ ने सूपोदन व्रत किया था| अब तुम तेल तथा जल से उसे फल का सकंल्प करके वह अपने मृत पति को प्रदान कर अपने मृत पति से प्रार्थना कर बोलो – ‘हे स्वामी! मेरी माँ ने जो सूपोदन व्रत किया था, तुम उसके पुण्य प्रभाव से जीवित हो उठो, बालिका ने महादेव-पार्वती के आदेश का पालन करते हुए उनके द्वारा बतलाई गई विधि का पालन कर संकल्प किया और तेल जल अपने मृत पति को प्रदान किया तो उसका मृत पति को प्रदान किया तो उसका मृत पति शिवादत्त उठ बैठा शिव-पार्वती बालिका को सूपोदन व्रत करने की सलाह दे अन्तर्धान हो गए|
शिवदत्त ने उस बालिका से पूछा-तुम कौन हो और यहाँ क्यों आई हो? बालिका ने अपने पति को जो जीवित हो उठा था, सब हाल कह सुनाया| इस हालचाल को कहने-सुनने में सारी रात व्यतीत हो गई| प्रातःकाल श्मशान-भूमि के नजदीक आये हुए नर-नारियों ने जब उन दोनों को जीवित देखा तो उन्होंने नगर में वापस जाकर राजा को बतलाया कि उनका पुत्र जीवित हो उठा है और पुत्रवधू और राजकुमार सकुशल हैं| वे दोनों नदी तट पर बैठे हैं| नरेश यह सुनकर अति हर्षित हुआ और वह दल-बल और बाजे-गाजे सहित नद के तट पर उन दोनों को लेने जा पहुँचा| जनता ने भी हर्षित हो राजा की स्तुति की और उसको बधाई दी|
परन्तु राजा अपनी पुत्रवधू पर अत्यन्त ही प्रसन्न था क्योंकि उसकी प्रभु-भक्ति से ही उसका पुत्र जीवित हो गया था| राजा ने जनता से कहा-हे नगरवासियों! मैं तो एक अत्यन्त ही तुच्छ जीव हूँ| आप सब लोग भी मेरी पुत्रवधू की स्तुति करें| क्योंकि उसकी प्रभु भक्ति से मेरा पुत्र पुनः जीवित हुआ है| तब राजा और रानी ने अपनी पुत्रवधू की और विद्वान ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दे विदा किया| नरेश ने नगर द्वार पर मृत पुत्र के पुनः जीवित हो जाने की खुशी में विद्वान ब्राह्मणों के निर्देशानुसार विधिपूर्वक शान्ति-प्रार्थना भी की|
शिव बोले – हे ब्रह्मापुत्र सनत्कुमार! हे वत्स! मैंने तुमको सूपोदन व्रत विधि नियमानुसार कह सुनाई है| प्राणीमात्र को चाहिए कि वह यह सूपोदन व्रत पाँच वर्ष तक लगातार करके ही उद्यापन पूरा करें| अतः शिव-पार्वती का प्रतिदिन पूजन करना चाहिए| प्रातःकाल चरू तथा आम के पत्तों से हवन करना चाहिए| बतलाये गये ढंग से ही नैवेद्य तथा वामन देने चाहिए| इस व्रत से मनुष्य को चिरायु प्राप्त होती है और मरणोपरांत वह शिवलोक (मोक्ष) पाता है|