श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-14 नागपंचमी व्रत (नत व्रत)
भगवान शिव बोले-हे महाभाग सनत्कुमार! अब मैं तुम्हें श्रावण मास में शुक्ल-पक्ष की पंचमी तिथि को किये जाने वाले नागपंचमी व्रत के बारे में बतलाता हूँ| श्रद्धाभाव से श्रवण करें| होता है| अत: दत्तचित्त हो और मन लगाकर सुनो|
चतुर्थी तिथि को एक समय भोजनकर पंचमी तिथि को व्रत करें| उस दिन नक्त व्रत करना आवश्यक होता है| नक्त व्रत के पश्चात् से बढ़ई अथवा कुम्हार से लकड़ी अथवा मिट्टी से पाँच फनधारी सर्प बनवाकर उसका विधिवत् पूजन करें| अपने निवास स्थान के बारह दरवाजे पर गोबर से सर्प बनवाकर उसकी दूब तथा दूध से अर्चना करें| सुगन्धित फूलों अक्षत, दीप, धूप से उसकी अर्चना करें| ब्राह्मणों को भी भोजन में खीर दें और लड्डू का भोग लगायें| ग्यारह प्रकार के नाग- अनंत, वास्तुकि, पद्यनाभ, शेष, कम्बल, कर्कोटक, अश्व, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालीय एवं तक्षक को दीवार पर हल्दी से अंकित करके और उसके और उसके साथ-साथ माता कद्रू का चित्र भी बनाकर पुष्पादि से उनकी अर्चना करनी चाहिए| व्रती को चाहिए कि नाग देवों की अर्चना कर उनको दूध में घी और खाँड मिलाकर पीने के लिए दें| व्रत वाले दिन रसोई में लोहे की कड़ाही न इस्तेमाल करें और उसमें कोई भी पकवान न बनायें| दूध और गेहूँ की खीर बनाकर, भुना हुआ चना, धान का लावा तथा भुने हुए धान नागों को खाने के लिए दें| स्वयं भी इसे भोजनस्वरूप खाना चाहिए| अपने घर के सदस्यों सहित और बच्चों को भी यही खाना चाहिए| इस प्रकार बच्चों की दंतावली मजबूत हो जाती है| नाग के बिल (बांबी) के करीब गायन व वादन कर नागपंचमी का उत्सव मनाना चाहिए| नारियों को भी सब प्रकार का श्रृंगार कर इस महात्सव में भाग लेना चाहिए| इस प्रकार उत्सव मनाने पर प्राणी को जीवन भर सर्प-भय नहीं रहता|
शिव बोले-हे सनत्कुमार! अब मैं प्राणी मात्र के हितार्थ तुम्हें कुछ कहता हूँ| अत: ध्यानमग्न हो मेरी बात सुनें| केवल साँप को देखने से ही प्राणी को अधोगति प्राप्त होती है क्योंकि सर्प सदैव ही तमोगुणी होता है| पहले कही गई विधि के अनुसार एकमुक्त आदि के नियम से ब्राह्मणों को बुलाकर प्रेमपूर्वक सर्प की अर्चना करनी चाहिए| इस प्रकार वर्ष भर में समस्त शुक्ल-पक्षों की पंचम तिथियों का व्रत करना चाहिए| वर्ष की समाप्ति पर पुनः शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग-पूजन करना चाहिए| इस प्रकार नागों को भोजन देने के लिये साधु-महात्माओं और ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए| इतिहासविद को स्वर्ण निर्मित सर्प दान में देना चाहिए| समस्त प्रकार की सामग्री के साथ सन्वत्सा गौ को दान में देते समय यह मन्त्र अवश्य ही उच्चारित करें-‘प्रभु जो कि सर्वव्यापक हैं, सब कुछ प्रदान करने वाले हैं, कण-कण में मौजूद हैं, अजेय हैं, उनको स्मरण कर उपवासक यह बोले –
हे गोविन्द! मेरे कुटुम्ब में, हमारे पुरखों में से जो मनुष्य साँप के द्वारा काटने से अधोगति को प्राप्त हुए हैं, वे सब इस व्रत और दानकर्म से मोक्ष (मुक्ति) को प्राप्त हों|’
ऐसा बोलकर सफेद चन्दन लगे चावल से, पानी की भक्ति से, वासुदेव के शव को पानी में डालकर छोड़ देना चाहिए| ऐसी विधि से पूजा, व्रत एवं दान से जो प्राणी उपवासक के वंश में सर्प द्वारा काटने से अधोगति को प्राप्त हुए होंगे या मरने वाले होंगे, हे मुनि! वे सब सर्प-गति से स्वतन्त्र हो सुरलोक को प्रस्थान कर जायेंगे|
हे मुनिसत्तम! इस ढंग से व्रत करने वाला अपने वंश को उबारता है| वह अप्सराओं द्वारा पूजा जाता है| अन्त में वह शिवलोक (मोक्ष) जाता है| वित्ताशाठय विहीन हो जो व्रत को सम्पन्न करता है, वह नागपंचमी व्रत से प्राप्त होने वाले सारे फल प्राप्त करता है| जो प्राणी श्रावण मास में पंचमी को श्रद्धा एवं भक्ति सहित नक्त व्रत पूरा करते हैं, पुष्प और अन्य प्रकार के उपहार से नागदेव की अर्चना करते हैं, उन पर मणिकिरणवान भास्कर भी हर्षित होते हैं| इसके विपरीत मकान का दान या प्रतिग्रह लेने वाले संसार के समस्त दु:खों को भोगते हुए मरणोपरन्त अधोगति में सर्पयोनि को प्राप्त होते हैं| हे ब्रह्मापुत्र! नाग-हत्या करने वाले के यहाँ पुत्रोत्पत्ति नहीं होती है| नारियों की कृपणता के कारण उन्हें भी मरणोपरान्त सर्पयोनि मिलती है| जो प्राणी अमानत में खयानत करते हैं वे भी सर्पयोनि में जाते हैं| ऐसे प्राणियों को इस अधोगति से निकालने के लिए नागपंचमी का व्रत ही श्रेयस्कर है| शेषनाग और वासुदेव की विनती से हर्षित हो सदाशिव भगवान उन प्राणियों की सारी मनोच्छाओं को पूरा करते हैं| तत्पश्चात् वे प्राणी नागलोक में जाकर पहले तो प्रभु द्वारा प्रदत्त सुख-सुविधाओं का उपभोग करते हैं| फिर बैकुण्ठ लोक में जाकर हा विष्णुगण या शिवगण बन परमानन्द पाते हैं|