व्यर्थ गयी कमाई
पराशर जी सारी उम्र योगाभ्यास में रहे| पूर्ण योगी होकर घर को वापस आ रहे थे| रास्ते में एक नदी पड़ती थी| जब वहाँ आये तो मल्लाह से कहा कि मुझे पार उतार दो| मल्लाह ने कहा कि हम रोटी खा लें, रोटी खाकर तुम्हें पार उतार देंगे| पराशर जी कहने लगे, धूप चढ़ जायेगी, मुझे जल्दी पार कर दो, नहीं तो मैं श्राप दे दूँगा| अब जो काम माँ-बाप करते हैं, बच्चे भी बड़ी आसानी से कर लेते हैं| मल्लाह की लड़की ने बाँस लिया, नाव की रस्सी खोली और कहा, पिता जी, मैं इन्हें पार उतारकर आती हूँ| अब ऋषि सारी उम्र जंगलों में रहा, औरत की शक्ल नहीं देखी थी| देखकर मन चलायमान हो गया| अपना बुरा विचार प्रकट किया| लड़की ने कहा कि हम लोग मछुए हैं, मेरे मुँह से आपको बदबू आयेगी| ऋषि ने कहा कि योजन गन्धारी हो जा| उसके मुँह से चार-पाँच मील तक ख़ुशबू आने लगी| लड़की बोली, सूर्य देवता देख रहे हैं कि हम पाप करने लगे हैं, यह हमारी गवाही देंगे| ऋषि ने पानी की चुल्ली भरकर मारी और चारों ओर धुन्ध कर दी| लड़की फिर कहने लगी कि यह जल वरुण देवता हैं, यह देख रहे हैं| ऋषि ने रेत की मुट्ठी लेकर दरिया में फ़ेंक दी, और कहा, रेत बना जा| पानी की जगह रेत हो गयी|
देखो! मन कितना ख़तरनाक है| पूर्ण गुरु की शरण न लेने के कारण महात्मा अपने मन को नहीं रोक सके बल्कि योग द्वारा प्राप्त अपनी सारी कमाई नष्ट कर दी|
जनम जनम की इसु मन कउ मलु लागी काला होआ सिआहु||
खंनली धोती उजली न होवई जे सउ धोवणि पाहु|| (गुरु अमर दास)