सतगुरु अंग-संग
बहुत समय पहले का ज़िक्र है| एक बार बड़े महाराज जी शिमला गये| दो सत्संगी भाई काहन सिंह और भाई मग्घर सिंह आपके साथ थे| कुछ लोग आये और सत्संग में बैठ गये| श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के शब्दों पर सत्संग हो रहा था| बड़े महाराज जी ने कहा कि अगर कुछ कहना हो तो बानी की व्याख्या बन्द कर दें| वे बोले, “नहीं|” जब शब्द पूरा हो गया तो कहने लगे कि हमें आपके साथ बातचीत करनी है| आपने कहा, बहुत अच्छा| उनमें से पहले एक ने और फिर दूसरे ने हुज़ूर से बातचीत की| पहले ने कहा कि अन्दर बाजे तो नहीं बजते| आपने कहा, बजते हैं| उसने पूछा, सबूत? आपने कहा, “गुरु ग्रन्थ साहिब को मानते हो?” बोला, “क्यों नहीं!” आपने कहा, सुनो! ग्रन्थ साहिब का क्या कथन है:
घर महि घरु देखाइ देइ सो सतिगुरु पुरखु सुजाणु||
पंच सबद धुनिकार धुनी तह बाजै सबदु नीसाणु||
जब बानी में से बता दिया तो वह कहने लगा कि जी, मैं तो मानता हूँ, लेकिन यह साथवाले नहीं मानते| आपने जो कुछ कहा है सच कहा है|
दुनिया में सब प्रकार के लोग होते हैं| सत्संग में कुछ लोग तमाशा देखने के लिए आते हैं और कुछ बहस करने का खोटा ख़याल लेकर आते हैं| ये लोग तो चले गये पर संगत में कुछ और लोग बैठे थे जिनमें कई अभ्यासी भी बैठे हुए थे जैसे सरदार जगजीत सिंह और उनकी धर्मपत्नी और भाई केहर सिंह की धर्मपत्नी वगै़रह-वगै़रह| जब वे लोग चले गये तो सरदार जगजीत सिंह बोले कि हुज़ूर| जब आप बातें कर रहे थे तो आपके पास सतगुरु (बाबा जैमल सिंह) खड़े थे| उनकी पत्नी ने भी यही बात कही| इसी प्रकार भाई केहर सिंह की पत्नी, जो रूहानी सोसाइटी की प्रधान थीं, बोली कि जब आप बातचीत कर रहे थे तब एक बूढ़ा बाबा आपको मदद दे रहा था|
सो सतगुरु तो हर वक़्त अंग-संग होते हैं|