राबिया बसरी-परमात्मा की सच्ची भक्त
परुषों और महिलाओं, दोनों में ऊँचे दर्जे के सन्त हुए हैं| राबिया बसरी भी ऊँचे दर्जे की एक ऐसी फ़क़ीर हुई हैं| एक बार उनके पास दो फ़क़ीर आये| राबिया ने कहा कि परमात्मा की कोई बात सुनाओ| एक फ़क़ीर ने कहा, “जो परमात्मा की ओर से आये दु:ख को प्यार से सह ले, वही सच्चा शिष्य है|” राबिया कहने लगी कि इसमें अहंकार की बू है| कोई इससे ऊँची बात कहो|
दूसरा फ़क़ीर बोला कि परमात्मा की ओर से जो तकलीफ़, बीमारी, तंगी, दुःख आये उसको सुख मानकर भोग लेना चाहिए| राबिया ने कहा, यह भी ठीक नहीं| कोई इससे भी अच्छी बात सुनाओ| उन्होंने कहा कि फिर आप ही बताओ| राबिया बोली, “मैं उसको फ़क़ीर समझती हूँ, जिसको सुख-दुःख का कोई अहसास ही न हो|”
यही गुरु तेग़ बहादुर साहिब कहते हैं:
सुख दुखु दोनो सम करि जानै अउरु मानु अपमाना||
एक बार बड़े महाराज जी ने जब यह कहानी सुनायी तो एक सत्संगी ने कहा, “हुज़ूर! और तो सारे दुःख सहे जाते हैं, अपनी निन्दा भी सुनी जा सकती है, लेकिन गुरु की निन्दा नहीं सही जाती|” बड़े महाराज जी ने जवाब दिया, “अगर कोई गुरु की निन्दा करे तो आप वहाँ से चुपचाप उठकर चले जाओ| रही अपनी निन्दा और स्तुति| आप न निन्दा में नाराज़ हों, न स्तुति में ख़ुश| एक हाथी जा रहा है| कुत्ते भौंकते हैं| वह चुपचाप चला जा रहा है, उनके भौंकने की परवाह नहीं करता| इसी तरह जो मालिक के प्यार में रँगा हुआ है, दुनिया उसको जो मर्ज़ी कहे, वह परवाह नहीं करता|”
जब ते साधसंगति मोहि पाई|| ना को बैरी नही बिगाना सगल
संगि हम कउ बनि आई|| जो प्रभ कीनो सो भल मानिओ एह
सुमति साधू ते पाई|| सभ महि रवि रहिआ प्रभु एकै पेखि पेखि
नानक बिगसाई||
(गुरु अर्जुन देव जी)