प्रेम से प्रेम, घृणा से घृणा
कहते हैं कि एक बार अकबर बादशाह और बीरबल कहीं जा रहे थे| कुछ फ़ासले पर उन्हें एक जाट आता नज़र आया| अकबर बादशाह ने बीरबल से कहा कि इसे देखकर अचानक मेरा मन कहता है कि इसे गोली मार दूँ| देखें उसके दिल में मेरे लिए क्या विचार आते हैं? जब वह जाट उनके नज़दीक आया तो बीरबल ने बादशाह की ओर इशारा करते हुए उस जाट से पूछा कि भाई, डरो न, सच-सच बताओ, जब तेरी नज़र इस आदमी पर पड़ी तो तेरे मन में क्या ख़याल आया था? उस जाट ने कहा कि मेरा दिल चाहता था कि इस आदमी की दाढ़ी खींच लूँ| इस ख़याल की तरजुमानी (पुष्टि) हो गयी कि दिल को दिल से राह होती है|
इसलिए कहते हैं कि अगर शिष्य गुरु को प्यार करेगा तो गुरु भी ज़रूर उसे प्यार करेगा|