पैग़म्बर और उसके शिष्य
एक बार हज़रत मुहम्मद साहिब अपने दोस्तों और इमामों को मस्जिद में ले गये और पूछा, “आपके पास क्या-क्या है?” हज़रत उमर ने कहा कि मेरी औरत है, लड़के-लड़कियाँ हैं, ऊँट वगैरह हैं| सबकुछ गिनते-गिनाते उसे बहुत समय लग गया| दूसरों ने भी इसी तरह बताया| जब हज़रत अली की बारी आयी तो वे अपनी जगह से उठे और बोले, “मेरा तो एक ख़ुदा है और एक आप हैं, इसके अलावा मेरा कुछ नहीं|” हज़रत मुहम्मद साहिब का मतलब उनको समझाना था, सो इस तरह समझा दिया|
हज़रत मुहम्मद अपने शिष्यों से बातचीत के माध्यम से अपना उपदेश दिया करते थे| परमार्थ में सांसारिक पदार्थों की कोई ख़ास महत्ता नहीं, वे हमारे पास थोड़े समय के लिए होते हैं और दुनिया से कूच करते समय हमारे साथ नहीं जाते| जो दुनिया में ज़्यादा फँसा हुआ है, उसका यही हाल होता है| वह बार-बार दुनिया में जन्म लेता है| जो ख़ुदा से प्यार करता है, वह दुनिया में क्यों भटकेगा? यह समझने की बात है|
जब लगु मेरी मेरी करै|| तब लगु काजु एकु नही सरै||
जब मेरी मेरी मिटि जाइ|| तब प्रभ काजु सवारहि आइ|| (कबीर साहिब)