मुर्ख को समझाना बेकार
एक बार किसी मुर्ख व्यापारी ने एक घोड़े पर एक तरफ़ दो मन गेहूँ लाद दिया तथा दूसरी ओर दो मन रेत डाल ली कि बोझ बराबर हो जाये और घोड़े को तकलीफ़ न हो| एक ग़रीब आदमी ने, जो उसे बोझ लादते देख रहा था, पूछा, “श्रीमान यह आप क्या कर रहे हैं?” व्यापारी बोला, “एक तरफ़ गेहूँ और दूसरी तरफ़ भार बराबर करने के लिए रेत है?” वह आदमी कहने लगा कि अगर दो मन गेहूँ को एक मन एक ओर और एक मन दूसरी ओर डाल लेते तो क्या था? घोड़ेवाले ने कहा, “तेरी कितनी दौलत है?” उसने कहा कि बस जान ही जान है| तो घोड़ेवाले ने कहा कि मेरे साथ बात मत कर| कहीं मैं भी तेरे जैसा ग़रीब न हो जाऊं| अपनी अक्ल और बदकिस्मती अपने पास रख|
सो नासमझ लोग सलाह देने के लिए तैयार नहीं होते| इसी तरह सन्त भी शिक्षा देते हैं पर हम उनकी एक नहीं सुनते|
उन जैसा बहरा और कौन हो सकता है जो सुनेंगे नहीं| (कहावत)