मौत की खुशी
ढिलवाँ गाँव का ज़िक्र है| एक स्त्री शरीर छोड़ने लगी तो अपने घरवालों को बुलाकर कहा, “सतगुरु आ गये हैं, अब मेरी तैयारी है| उम्मीद है कि आप मेरे जाने के बाद रोओगे नहीं क्योंकि मैं अपने सच्चे धाम को जा रही हूँ| इससे ज़्यादा और ख़ुशी की बात क्या हो सकती है कि सतगुरु ख़ुद साथ ले जा रहे हैं| उसके बेटे कहने लगे कि हमारा क्या होगा? तो वह शान्ति से बोली, “आप अपना आप ख़ुद सँभालो|”
जब मौत के वक़्त गुरु सामने आ जायें तो और क्या चाहिए? अगर आप टाट का कोट उतारकर मख़मल का कोट पहन लें तो आपको क्या घाटा है? अगर आप इस गन्दे देश से निकलकर कुल-मालिक के देश में चले जायें तो आपको और क्या चाहिए?
अगर कोई आदमी इस दुनिया में ख़ुशी-ख़ुशी मरता है तो केवल
शब्द का अभ्यासी ही| बाक़ी कुल दुनिया, बादशाह से लेकर
ग़रीब तक, रोते हुए ही जाते हैं|
(महाराज सावन सिंह)